Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 124
________________ कृष्ण लेश्या का तिलिस्म मनुष्य जैसा है, अपने ही कारण है। मनुष्य अपना निर्माण स्वयं करता है। अगर वह विध्वंस प्रवृत्ति का है तो स्वयं के कारण है और सृजनशील है तो भी स्वयं के कारण। जो तुम करते हो, उसका सारा उत्तरदायित्व तुम्हारा है । तुम्हें कोई दुःख नहीं दे सकता, दुःख है तो उसके कारण भी तुम्हीं हो और सुख का कारण भी तुम्हीं । अगर बंधन है तो तुमने ही बँधना चाहा होगा और मुक्ति है तो वह भी तुम्हारी इच्छा का परिणाम है । मनुष्य की वृत्तियाँ ही उसे सुख और दुःख देती हैं। जैसे विचार होंगे वैसी ही परिणति भी होगी। तुम्हारे सोच-विचार और मानसिकता ही तुम्हारा जीवन बनाते हैं। किसी दूसरे के कारण तुम अच्छे या बुरे इन्सान नहीं हो सकते, यह तो आप पर निर्भर है। मोक्ष और मुक्ति या बंधन तुम्हारे ही क्रिया-कलाप हैं। ओल्ड टेस्टामेंट में सोलोमन का प्रसिद्ध वचन है- ' जैसा आदमी सोचता है, वैसा हो जाता है'। (As a man thinks so he becomes.) समूचे ब्रह्माण्ड में मनुष्य से अधिक अहम अन्य कुछ नहीं है । मनुष्य है तो सागर की महत्ता है, नदियों का मूल्य है, चाँद-सितारों का सौन्दर्य है, धर्म-स्थलों की मूल्यवत्ता है। मनुष्य महत्त्वपूर्ण है इसलिए उस पर सम्पूर्ण उत्तरदायित्व है। उसकी जिम्मेदारी किसी अन्य पर नहीं थोपी जा सकती । कृष्ण लेश्या का तिलिस्म Jain Education International For Personal & Private Use Only 115 www.jainelibrary.org

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