Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 126
________________ ऐसा हुआ, श्रवण कुमार अपने अंधे माता-पिता को कावड़ में बिठाकर, कंधे पर कावड़ लेकर चल रहा था। वह उन्हें तीर्थ-दर्शन के लिए ले जा रहा था। वे कुरुक्षेत्र की युद्ध-भूमि के निकट पहुँचे। श्रवण के मन में अचानक क्या हुआ कि उसने कावड़ उतारकर रख दी और माता-पिता को आगे ले जाने से इन्कार करने लगा। कुछ अनर्गल भी बोल दिया। माता-पिता बमुश्किल टकराते-बचते उस क्षेत्र से बाहर निकले। जैसे ही वहाँ से बाहर आए श्रवण कुमार को प्रायश्चित्त होने लगा। वह बार-बार उनसे क्षमा माँगने लगा। तब पिता ने कहा, 'इसमें तेरा दोष नहीं है पुत्र । यह भूमि ही ऐसी है, यहाँ का वायुमण्डल ही दूषित है। यहाँ भाइयों-भाइयों के बीच युद्ध हुआ है। यहाँ पुत्र ने पिता की हत्या की है, पिता ने पुत्र को नहीं छोड़ा। गुरु ने शिष्य को मारा है, शिष्य ने गुरु को मारा है। यह इस स्थान का ही प्रभाव है, यहाँ बेटा बाप की सेवा कैसे कर सकता है ?' जैसे मनुष्य के विचार होंगे, वैसा ही लेश्यामंडल/आभामण्डल होगा। विचारों के क्रमशः परिष्कृत होने से लेश्या-रंग भी बदलते जाते हैं। आज के सूत्र मनुष्य के मूल विचारों से जुड़े हुए हैं। धन-सम्पत्ति से व्यक्ति का आकलन मत करना, उसके विचार ही जीवन का प्रतिबिम्ब हैं। भगवान महावीर प्रथम वैज्ञानिक और मनोवैज्ञानिक हैं जिन्होंने मनुष्य के मन को पढ़ा, मन की उन तरंगों को पढ़ा, जिससे व्यक्ति बंधन और मुक्ति के पथ पर अग्रसर होता है। महावीर कहते हैं कि मनुष्य सबसे पहले अपने विचारों को देखे, समझे। जब तक व्यक्ति अपने छिद्रों को, आगमन के स्रोतों को बन्द नहीं कर लेता, तब तक चाहे जितना उलीचो, नौका में पानी भरता ही रहता है। इसलिए भगवान कहते हैं कि चाहे जितने व्रत-उपवास, पूजा-पाठ कर लो, किन्तु वैचारिक पवित्रता नहीं आती है, तो उसकी लेश्याएँ कभी परिष्कृत नहीं हो सकती। ... सूत्र है दो णय, चंडो ण मुंचई वेरं भंडणसीलो य धरमदयरहिओ। दुट्ठो ण य एदि वसं, लक्खणमेयं तु किण्हस्स ।। स्वभाव की प्रचण्डता, रौद्रता, वैर की मजबूत गाँठ, झगड़ालू वृत्ति, धर्म और दया से शून्यता, दुष्टता, समझाने से भी नहीं मानना ये कृष्ण लेश्या के कृष्ण लेश्या का तिलिस्म 117 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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