Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 123
________________ कहते हैं। ज्ञान और ध्यान में ज्यादा फर्क नहीं है। दोनों ही प्रज्ञा और बोध से जुड़े हैं। एक बात हम भलीभाँति समझ लें कि ध्यान कोई रूखा या कठिन मार्ग नहीं है। दुनिया में धर्म और अध्यात्म के जितने भी आयाम हैं, ध्यान उनमें सबसे सहज-सरल है। किसी तरह का कोई प्रयास नहीं, बस, सहज। हंसिबा, खेलिबा, धरिबा ध्यानम्। _ और ऐसा भी नहीं है कि ध्यान करने वाला आदमी समाज, श्रम या कर्म से विमुक्त हो जाता है या जगत से कट जाता है। सत्य तो यह है कि ध्यान से व्यक्ति की संवेदनशीलता का विकास होता है और तत्परता एवं सजगता के साथ व्यक्ति अपने कार्यों को आराम से सम्पादित करता है। हम तो केवल अपने परिचितों से ही मित्रता रख पाते हैं, पर ध्यान-साधक की मैत्री तो मनुष्य से ऊपर उठकर पशु-पक्षी, फूल-पत्ते तथा चाँद-सितारों से जुड़ जाती है। ध्यान न तो गंभीर कृत्य है, न बोझ और न ही रोग। यह तो स्वयं को निर्भार करने की कला है। विधियाँ अलग-अलग हो सकती हैं। जो विधि हमारे लिए अनुकूल हो हम उसी विधि द्वारा स्वयं में उतरने का प्रयास करें। हमारी मौलिक प्रतिभा कुंठित होती जा रही है। ध्यान हमारी प्रतिभा को जगा सकता है। हाँ, हमारे जीवन में ध्यान की उर्वरा भूमि पर कुछ फूल खिल सकते हैं जिन फूलों को मैं नाम देना चाहूँगा सहजता, सजगता, प्रसन्नता, धीरजता, लयबद्धता। भगवान करे, आप सब लोगों के जीवन में ऐसे ही फूल खिल जाए। और आप ध्यान रूपी उस दिव्य अग्नि के मालिक बनें कि अपरिमित कर्म ईंधन को क्षण भर में भस्म करने की क्षमता उपलब्ध कर लें। आज के लिए इतना ही। आप सबके अन्तर्धरा में विराजित परम पिता परमेश्वर की दिव्य ज्योति को प्रणाम। 14 धर्म, आखिर क्या है? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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