________________
कभी कुछ दूसरा विरोध। क्या लोगों की इस निंदा से आप प्रभावित नहीं होते ? तब कबीर ने कहा
तू तो राम सुमिर, जग लड़वा दे
हाथी चलत है अपनी गति से, कुतर भुसत वाको भुसवा दे। हाथी भौंकने वाले कुत्तों की फिक्र नहीं करता। वह अपनी मस्त चाल में चलता जाता है। उसे अपने बल पर भरोसा है, लेकिन बल की कोई घोषणा नहीं है। यहीं हाथी सिंह से भिन्न है, क्योंकि सिंह में अभिमान है।
ईसप की प्रसिद्ध कहानी है कि एक सिंह जंगल में गया और सबसे पूछने लगा कि इस जंगल का राजा कौन है ? सियार से पूछा तो सियार ने कहा, 'आप, आपके अलावा कौन !' लोमड़ी से पूछा, उसने कहा 'आप महाराजा हैं, सम्राट हैं।' खरगोश से पूछा, चीते से पूछा, सभी पशुओं से पूछा सभी ने यही कहा–'आप ही राजा हैं, आप ही हमारे सम्राट। फिर वह हाथी के पास आया और पूछा, 'बताओ इस जंगल का राजा कौन है ?' हाथी ने अपनी सूंड में सिंह को फँसाया और दूर फेंक दिया। सिंह नीचे गिरा, धूल झाड़कर फिर वापस आया और बोला कि अगर तुम्हें मालूम नहीं है, तो नाराज होने की क्या बात है।
हार्थी की कोई घोषणा नहीं है, वह स्वयं में मस्त है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि जो लोग अपने अहंकार की घोषणा करते हैं वे हीनभाव से ग्रस्त होते हैं। अगर तुम्हें भीतर पता होता है तो तुम घोषणा नहीं करते। जो नहीं है, उसकी घोषणा करनी पड़ती है। जब तक हम दूसरे से भरोसा न पा लें, तब तक हमें भरोसा ही नहीं आता। ऐसा भरोसा बेकार है, जो दूसरे के कारण मिलता है। भरोसा स्वयं का रखो। हाथी को देखो कोई घोषणा नहीं करनी पड़ती। सिंह में, प्रगटतः अक्खड़पन हो सकता है। पर हाथी, वह चलता है, उठता है, बैठता है तो एक साधुक्क्ड़ी मस्ती झलकती है। हाथी चलता है तो कुत्ते भौंकते रहते हैं, वह पलटकर भी नहीं देखता, नाराज भी नहीं होता। वह जानता है कुत्ते हैं, भौंकेंगे। वह चलता रहता है अपनी मंथरगति से। भगवान कहते हैं-साधक हाथी-सा स्वाभिमानी हो।
भगवान साधक के लिए तीसरी बात कहते हैं-वृषभ की तरह भद्र बनो। बैल से ज्यादा भद्र कोई प्राणी नहीं है। बैल में अपरिमित शक्ति होती है, लेकिन
धर्म, आखिर क्या है?
-
2
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org