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मस्तिष्क में होती हैं और वृक्ष की जड़ें जमीन में । आदमी एक उल्टा पेड़ है या यों कहें पेड़ एक उल्टा आदमी है ।
महावीर कहते हैं- शरीर का मूल सिर और वृक्ष का मूल जड़ें। जिसकी जड़ें कमजोर है वह वृक्ष कमजोर। मैंने सुना है, एक आदमी रेगिस्तान से गुजर रहा था। जोर की भूख-प्यास लगी। पास में कुछ न था खाने-पीने लिए। एक पेड़ के पास पहुँचा और खाने के लिए कुछ फल तोड़े। देखा, फलों में कोई रोग लगा था, उसने पत्तों को देखा तो वे भी रुग्ण । डालियों को देखा तो उनमें भी वही रोग और कीड़े लगे थे। और तो और पेड़ का तना भी रोग से घिरा था। अन्ततः उसने पेड़ की जड़ों को खोद कर देखा तो जड़ों में भी रोग था । उसे समझते देर न लगी कि जिसकी जड़ें विकृत हैं उसके फल तो विकृत होंगे ही। सावधान ! फलों के रोग मिटाने के लिए भी दवा फलों पर नहीं जड़ों पर छिड़कनी होती है। जानते हो वृक्ष जितना ऊँचा होता है, उसकी जड़ें उतनी ही गहरी होती हैं। पेड़ कभी भी फलों, पत्तों और डालियों पर नहीं टिकता, वह तो जड़ों पर ही टिकता है । इसलिए महावीर ने ये दो उदाहरण दिये- शरीर का आधार सिर और वृक्ष का उसकी जड़ें ।
महावीर कहते हैं - ऐसे ही साधना का आधार, चित्त की शांति और शुद्धि का आधार ध्यान है । चाहे गृह जीवन की व्यवस्था हो या साधक की साधना – बिना ध्यान सब सून । अगर तुम्हारा भोजन सही नहीं बना, तो इसका कारण है तुमने ध्यान से भोजन नहीं बनाया। अगर तुम परीक्षा में असफल हुए, तो इसका कारण है तुमने ध्यान से पढ़ाई न की । अगर वाहन चलाते हुए दुर्घटना हो गयी तो उसका कारण तुमने वाहन ध्यान से नहीं चलाया होगा। और तो और, चलते हुए अगर ठोकर भी लग जाये तो समझो तुम ध्यान से नहीं चल रहे थे । ध्यान तो सर्वत्र आवश्यक है संसार में भी और साधना में भी ।
साधना के जितने भी मार्ग हैं उनमें ध्यान मुख्य है । आत्म- साधना रत व्यक्ति पल-पल ध्यान में जिये । तीर्थंकरों की जितनी भी प्रतिमाएँ हैं वे ध्यानस्थ हैं। ये प्रतिमाएँ साधक के लिए प्रेरणा - सूत्र हैं । व्यक्ति जब भी सिद्ध६- बुद्ध- - अरिहंत होता है, इसी ध्यान के मार्ग से ही होता है । मन की शांति, तनाव से मुक्ति और आत्मशुद्धि का मार्ग है ध्यान ।
मुक्ति का मूल मार्ग : ध्यान
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