Book Title: Dharm Aakhir Kya Hai
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 111
________________ सकता। तुम बार-बार संसार में आते हो, धर्म में भी प्रवृत्त होते हो, लेकिन आत्म-बोध की चाबी के बिना 'बैरंग' वापस चले जाते हो। गीता में भगवान कृष्ण अर्जुन से कहते हैं-'ज्ञानाग्नि सर्व कर्माणि भस्मसात् कुरुतेऽर्जुनः' ज्ञान रूपी अग्नि जीवन में प्रज्वलित हो जाए तो उसके कर्म रूपी दोष भस्म हो जाते हैं। प्रश्न है वह ज्ञान कौन-सा ? ___ वह ज्ञान नहीं है जिसका हमें अहं हो रहा है। वह भी सम्यक् ज्ञान नहीं है जिसके बल पर हम दूसरों को उपदेश देते हैं। सच्चा ज्ञान तो वह ज्ञान है जिसे हम आत्म-ज्ञान कहते हैं। ध्यान वास्तव में शरीर, मन-विचार और लेश्याओं के पार स्वयं तक, अपनी आत्मा तक पहुँचने का मार्ग है। विश्व के अध्यात्म जगत् की आत्मा भारत है तो भारत की आत्मा ध्यान है। अगर ध्यानयोग को भारतीय अध्यात्म जगत से अलग कर दिया गया तो पीछे बचेगा क्या? आज भगवान जो सूत्र दे रहे हैं, वह उस मार्ग को और अधिक तेजस्विता प्रदान कर रहा है। भगवान का आज का सूत्र है सीसं जहा सरीस्स, जहा मूलं दुमस्स य। सव्वस्स साधुधम्मस्स, तहा झाणं विधीयते।। जैसे शरीर में सिर महत्त्वूपर्ण है और वृक्ष में उसकी जड़ें महत्त्वपूर्ण हैं, वैसे ही साधु के समस्त साधना-मार्गों/धर्मों में ध्यान महत्त्वपूर्ण/मूल है। महावीर का यह महत्त्वूपर्ण सूत्र है। एक ऐसे मार्ग को प्रशस्त करता सूत्र जिसे महावीर ने पल-पल अपने जीवन में जीया है। यह सूत्र उस मार्ग का प्ररूपण कर रहा है जिसके बलबूते पर महावीर ने कैवल्य और मुक्ति को उपलब्ध किया था। सच में ध्यान ही तो हर अरिहंत और बुद्ध का आधार रहा है। सूत्र का पहला चरण है जैसे शरीर में सिर मुख्य है। अद्भुत उपमा दी है महावीर ने। शरीर में से सिर और वृक्ष में से उसकी जड़ें निकाल दो, तो दोनों ही अर्थहीन हो जाएँगे। आप एक ऐसे शरीर की कल्पना करें जिसमें सारे अंग हों, पर मस्तिष्क न हो। क्या उस जीवन का कुछ विकास हो पाएगा? मस्तिष्क तो आदमी का मूल है जैसे पेड़ में उसकी जड़ें। जड़ें अगर विकृत हो गयी हैं तो समझो पूरा पेड़ ही विकृत हो रहा है। आदमी की जड़ें m धर्म,आखिर क्या है ? Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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