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पर आश्रित, बाहरी सहारे जिसके लिए निरर्थक और अनुपयोगी हो गए हैं। आकाश जैसा हो जाए साधक । बादल आकाश को ढक ले, तो भी आकाश है। ऐसे ही साधक पर संसार, समाज कितने भी प्रभाव डाले, निंदा करे, वह स्वयं में स्थित रहे, बाह्य उपकरणों से अविचल।
इन चौदह गुणों से युक्त साधक ही परमपद मोक्ष की डगर पर है। इस पथ पर ऐसा व्यक्ति ही चल पाता है जो रास्ते की कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर लेता है। महावीर के ये संदेश हमें सद्मार्ग पर चलने में सहयोगी बने,
और हम इन पर मनन करें, चिंतन करें और आत्मसात करने का पूर्ण प्रयास करें, ऐसी कामना है।
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धर्म,आखिर क्या है?
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