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युवती घर आई, लापसी बनाई । अब तमाखू तो घर में थी नहीं । दौड़कर बाजार से सौ ग्राम तमाखू लाई और ऊपर से डाल दी। आए हुए मेहमान खाना खाने बैठे। जैसे ही उन्होंने लापसी खाई तो किसी को छींके आने लगीं, कोई वमन करने लगा। पति ने पूछा, 'क्या डाला है इसमें ?' उसने कहा, 'कुछ नहीं, जैसे उस बुढ़िया ने कहा, वह सब डाला है।' 'सब क्या ?” पति चिल्लाया। उसने बता दिया कि यह डाला, वह डाला और सौ ग्राम तमाखू ऊपर से। पति दौड़ा-दौड़ा पड़ोस में गया और बुढ़िया से कहने लगा, 'आपने तमाखू क्यों बताया ?' 'मैंने कुछ नहीं बताया, तेरी बीवी ही कहती है वह पीहर से ही सीखकर आई है।' उसने जवाब दिया ।
जिसे ज्ञान का अहंकार हो गया है उससे अधिक अज्ञानी भला अन्य कौन है !
भगवान कहते हैं, मैं जन्मों-जन्मों तक संसार में भटकता रहा, लेकिन सुगति का मार्ग नहीं जाना । भगवान ने संसार को भयानक अटवी (भयानक जंगल) और घोर भवबंध कहा । इससे अधिक भयानक और कुछ होता नहीं, जहाँ पर जन्म का अंत मृत्यु में, खिलने का अंत मुरझाने में और उगने का अंत डूबने में होता हो, वहाँ इससे अधिक भयानक क्या स्थिति होगी ! हम सभी इस स्थिति से मुकाबिल हैं, लेकिन सुगति का मार्ग नहीं ढूँढ़ रहे हैं। और वे जिन्होंने सुगति के मार्ग को जाना है, मैं चाहता हूँ, हम उसे गुनगुनाएँ, उन वचनों का अमृतपान करें। जब तक वह मार्ग नहीं मिल जाता, जीवन में पाया हुआ सभी ज्ञान निरर्थक है ।
ध्यान, विवेक, विचार, जागरूकता, अमूर्च्छा, अप्रमाद और आत्म-बोध यही सुगति का मार्ग है। जिसे यह मार्ग मिल गया उसके मिथ्यात्व की कारा स्वयमेव ही टूट जाती है ।
हमारे यहाँ मिथ्यात्व और सम्यक्त्व का व्यापक प्रयोग हुआ है । सत् को असत् जानना मिथ्यात्व है और असत् को सत् रूप जानना भी मिथ्यात्व है। लेकिन असत् को असत् जानना और सत् को सत् रूप जानना सम्यक्त्व है ।
है—
अगला सूत्र
मिच्छतं वेदंतो जीवो, विवरीय - दंसणो हो ।
न य धम्मं रोचेदि हु, महुरं पि रसं जहा जरिदो ।
काटें, मिथ्यात्व की कारा
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