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दिया जाए तो उसमें सभी नदियाँ आ जाती हैं फिर अलग-अलग नदियाँ ढूँढ़ने कहाँ जाओगे। ठीक उसी तरह कह दिया सत्य, उसमें सभी गुणों का समावेश हो गया। जब सागर ही मिल जाए तो नदियों के पीछे क्या भटकना ! महावीर कहते हैं, सत्य की खोज करें। सत्य के साथ तप और संयम तथा शेष गुण भी आ जाएँगे। जीवन की व्यवस्थाओं में रूपान्तरण किया जाना चाहिए, तभी हम कुछ उपलब्ध कर पाएँगे। प्रभु करे, हम बाहर - भीतर की भेद-रेखाओं को समाप्त कर एक नवीन ताल - लययुक्त संगीत उत्पन्न करें। यही शुभकामना है।
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धर्म, आखिर क्या है ?
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