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है गौतम, सतत जाग्रत, सचेष्ट और होशवान बने रहना। मुहूर्त बड़े निर्दयी होते हैं। शरीर कभी भी दगा दे सकता है। हमारे आज के सूत्र हैं
सीतंति सुवंताणं अत्था पुरिसाण लोगसारत्था।
तम्हा जागरमाणा विधुणध पोराणयं कम्मं ।। 'जो पुरुष सोते हैं उनके सारे अर्थ जगत में नष्ट हो जाते हैं, इसलिए सतत जाग्रत रहकर पूर्वार्जित कर्मों को प्रकपित करो।"
ऐसा लगता है जैसे महावीर के वचनों का समस्त सार इन सूत्रों में समा गया है। महावीर के ये सूत्र जागरण-सूत्र हैं। इनका सार है-जागो। जागरण का वह अर्थ नहीं है जो तुम समझते हो। तुम्हारा जागरण तो नींद से निवृत्ति भर है। महावीर कहते हैं-जागरण चित्त की वह दशा है, जहाँ विचार का कोई आवरण न हो, शुद्ध चैतन्य हो। तुम जैसे हो उसका परम स्वीकार। जगत को खुली आँखों से देख लो तो तुम्हारी जिन्दगी में पहली दफा जागरण की यात्रा शुरू होगी।
__ जो पुरुष सोते हैं उनके सारे अर्थ जगत में नष्ट हो जाते हैं। कितना गहन अर्थ है कि जो सोते हैं उन्हें जीवन का अर्थ नहीं मिल पाता। इस जगत में बोध ही सारभूत अर्थ है। हमारे अपने अर्थ हैं, लेकिन उन अर्थों से क्या हासिल होता है ? सिकंदर, नेपोलियन साम्राज्य बढ़ाने में जीवन का अर्थ देख रहे हैं। तुम धन, पद, प्रतिष्ठा में जीवन का अर्थ देख रहे हो। कोई कुछ और में जीवन का अर्थ देख रहा है। महावीर के लिए ये सब अर्थ निरर्थक हैं। इनसे जीवन में कुछ मिलता नहीं है। जब तुम जाते हो तो ये सांसारिक चीजें यहीं छूट जाती हैं, इसलिए बोध, होश और जागरण को प्राप्त करो, यही जीवन का वास्तविक अर्थ है। ___मुझे याद है, तीन दोस्त घूमने गए। साँझ ढल रही थी, सोचा, यहीं खाना बना लें। अन्य कुछ तो बना नहीं सकते थे। अतः विचार किया कि खीर बना लेते हैं, उसे ही बनाना सबसे सरल है। दूध उबालो, चावल डालो, चावल पक जाएँ तो शक्कर डाल दो, बस खीर तैयार। ऐसा ही किया। गाँव से दूध, चावल, शक्कर, इलायची वगैरह ले आए, खीर बनाई और तीनों ने छककर खाई। खाने के बाद आलस आने लगा। तीनों ने विचार किया कि आज यहीं
धर्म, आखिर क्या है ?
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