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परमात्मा को जाग्रत करता है। अपने अंदर सोई हुई ईश्वरीय शक्तियों को जगाता है। एक तो भगवान अवतार लेते हैं और मनुष्य बनते हैं, दूसरे मनुष्य अपना विकास करता है और आत्मशुद्धि करते हुए स्वयं भगवान बन जाता है। बुद्ध और महावीर आत्म-संकल्प करके अगर साधना की ओर कदम बढ़ा देते हैं, फिर वहाँ कोई शिथिलता नहीं है। तब उनके जीवन में आने वाली विपदा या उपसर्ग, कोई संकट या उपद्रव उसे प्रभावित नहीं कर पाते। हमें तो किसी के दो कड़वे शब्द भी प्रभावित कर देते हैं, लेकिन उनके कानों में कीलें भी ठोक दी जाएँ तो वे प्रभावित नहीं होते। उन्हें कोई नाग डस ले तो भी वे निश्चल खड़े रहते हैं, पाँवों के बीच अँगीठी जला दे, तो भी शांत बने रहते हैं, क्योंकि वहाँ आत्म-संकल्प है, 'सबकुछ सह लूँगा, पर साधना से पीछे नहीं हटूंगा।
समर्पण में व्यक्ति स्वयं को परमात्मा में लीन कर देता है और संकल्प में व्यक्ति भीतर छिपे परमात्मा को जाग्रत करता है। समर्पण के मार्ग में धारा के साथ बहना है और संकल्प के मार्ग में धारा के विपरीत तैरना है। साधना के लिए संकल्पशील व्यक्ति साधना से डिगता नहीं। वह सबकुछ स्वीकार करने को तैयार है, लोग पत्थर फेंक रहे हैं तो पत्थर स्वीकार, पीछे अगर कुत्ते छोड़े जा रहे हैं तो कुत्तों का काटना भी स्वीकार, कुएँ में लटकाया जा रहा है तो वह भी स्वीकार, नाव को हिलाकर पानी में गिराने का प्रयत्न किया जा रहा है तो यह भी स्वीकार; वह साधनारत संकल्पशील व्यक्तित्व किसी भी प्रकार का व्यवधान अपनी ओर से नहीं देता। संकल्प और समर्पण दोनों ही मुक्ति देते हैं। आप अपने आपको तौलें कि आपके लिए दोनों में से कौन-सा मार्ग अनुकूल होता है। जीवन में दोनों में से एक को जरूर अपना लें। समर्पण कि फिर वहाँ कुछ न बचे या संकल्प कि तमाम कष्ट आने पर भी साधना-मार्ग से विचलित न हों। ___ संकल्प का मार्ग जागे हुए लोगों का मार्ग है। जो जीवन में जाग जाता है वही संकल्प का धनी और स्वामी होता है। जिसने जीवन में होश, जागरूकता, विवेक पा लिया, उसने जागरण का सूत्र भी पा लिया। तुमने देखा, तुम्हारी पत्नी को कैंसर हो गया। दो साल तक अतिशय वेदना झेलने के बाद उसकी देह का विसर्जन हुआ। इसके उपरान्त भी तुम्हारे अंदर किसी जागृति
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धर्म, आखिर क्या है?
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