________________
तुम भगवान से माँगते हो और कहते हो कि हम एक पैसा देंगे, वे दस लाख देंगे। ऐसी कौन-सी बैंक है जो दस लाख गुना दे दे ? तुम उससे इतनी अपेक्षा रखते हो फिर तुम्हारे कर्म भी दस लाख गुना होकर प्रतिध्वनित क्यों न हों। होते हैं, अवश्य होते हैं। जब तुम कर्म करोगे तो उनका शुभ-अशुभ फल जरूर मिलेगा। जैसे भाव, वैसी परिणति ।
दूसरा सूत्र है
न तस्स दुक्खं विभयन्ति नाइओ, न मित्तवग्गा न सुया न बंधवा । एक्को सयं पच्चणु होई दुक्खं, कत्तारमेव अणुजाइ कम्मं ॥
के
जाति, मित्र, पत्नी, परिवार, कुटुम्ब के लोग-ये सब मिलकर भी किसी दुःख को नहीं बाँट सकते। मनुष्य अकेला ही दुःख का अनुभव करता है, क्योंकि कर्म कर्ता का अनुगमन करते हैं । तुम जीवन भर धन कमाते हो लेकिन उपभोग कौन करता है, पूरा परिवार । और जो पाप बटोरा उसका उपभोग कौन करेगा, केवल तुम । वाल्मीकि के साथ क्या हुआ था ? वाल्मीकि ऋषि बनने से पूर्व एक डाकू था । जंगल में परिवार के साथ रहता था। परिवार के पेट-पालन के लिए राहगीरों को लूटता और कभी-कभी हत्या भी कर देता। एक बार सात ऋषि उस जंगल से गुजरे। उसने उन्हें भी लूटना चाहा। पर उन ऋषियों के चेहरे के तेज से थोड़ा भयभीत भी हुआ। लेकिन डरने से परिवार तो नहीं चलता । हिम्मत करके कहा, 'जो कुछ भी तुम्हारे पास है मुझे दे दो ।' ऋषियों ने कहा, 'हम तो संन्यासी हैं, धन-संपत्ति तो हमारे पास है नहीं। लेकिन तुम एक बात बताओ यह लूटमार किसके लिए करते हो ?' 'परिवार के पालन-पोषण के लिए' उसने कहा । ऋषि बोले, 'क्या तुम जानते हो कि यह जो तुम कर रहे हो, यह कितना गलत काम है, एक तरह से पाप ही है । क्या तुम्हारे परिवार वाले इस पाप में भागीदार बनेंगे ?” उसने कहा, 'जरूर बनेंगे, जब मैं कमाता हूँ तो सब खाते हैं तो मेरे पाप कार्य में भी वे बराबर के भागीदार होंगे।' ऋषियों ने कहा, 'तुम जाओ और जाकर पूछो तो सही कि वे तुम्हारे इस पाप कर्म में भागीदार हैं या नहीं ।'
वाल्मीकि गया और परिवार में पत्नी, माँ, बच्चों - सभी से पूछा - 'जो भी कार्य मैं करता हूँ वह पाप है और क्या इसमें तुम सब बराबर के हिस्सेदार हो ?' पूरा परिवार एक तरफ हो गया, कोई भी उसके कार्य में भागीदार न
धर्म, आखिर क्या है ?
52
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org