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या तो श्वेताम्बर हो या दिगम्बर, लेकिन महावीर को ऐसा कोई आग्रह नहीं था। अस्तित्व ने उनके लिए जो व्यवस्था की, उसे उन्होंने सहजतया स्वीकार कर लिया। एक चादर लेकर निकले थे। उसे ही बिछा लेते, उसे ही पहन लेते। राह चलते किसी याचक ने कहा कि कुछ दे जाएँ। महावीर तो अपरिग्रही और अकिंचन थे। उनके पास देवों द्वारा दी हुई एक चादर थी। उन्होंने उसमें से आधी फाड़कर दे दी। आगे बढ़ चले जंगलों की ओर, कभी तेज हवा का झौंका आया और वह चादर भी उड़ गई। उलझ गई झाड़ी में जाकर। सोचा, अस्तित्व नहीं चाहता कि मैं चादर ले जाऊँ, अब यह झाड़ी माँगती है। जब सारे पशु-पक्षी बिना वस्त्रों के रह सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ? और झाड़ी से छुड़ाना भी शोभा नहीं देता। महावीर निर्वस्त्र ही आगे बढ़ गए। ___आज मुनि-जीवन धारण करने के लिए बड़े-बड़े आयोजन किए जाते हैं। श्वेत वस्त्रों को धारण करने वालों का अलग सम्प्रदाय है और निर्वस्त्र रहने वालों का अलग। क्या महावीर ने सब कुछ सप्रयास किया था ? यह तो एक घटना थी जो घट गई और महावीर ने उसे भी स्वीकार कर लिया। ___ अगर हमारे भीतर अज्ञान है तो स्वीकार करना चाहिए। वस्त्रों से सुशोभित तुम लोग जरा भीतर झाँककर तो देखो कि बाहर से जिस शरीर को इतना सजाया है वह भीतर कितना सहज है। जीवन को दोहरी व्यवस्था से बाहर निकालना होगा। तुम अच्छे काम तो सार्वजनिक रूप से करते हो और बुरे काम इतने छिपकर करते हो कि किसी को भनक भी न लगे, लेकिन एक बात सदा ध्यान रखो कि तुम सबसे बच सकते हो, लेकिन खुद से बचकर कहीं नहीं जा सकते। इसलिए स्वयं को देखो। अपनी प्रदूषित मानसिकता से बाहर निकलो। आज के युग में वायु प्रदूषित और विचार भी प्रदूषित हैं। जैसे वायु के प्रदूषण से जीवन दूभर हो रहा है, वैसे ही विचारों के प्रदूषण से जीवन का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। अब मुहावरे बदलने लगे हैं। दोमुंहे साँप नहीं, इंसान हो गए हैं। कुत्तों के काटने से इंसान नहीं, कुत्ते ही मरने लगे हैं। इतना जहरीला हो गया है हमारा मानस। इसलिए भगवान कहते हैं—'सच्चम्मि वसदि तवो'।
सत्य में बसता है तप और संयम भी वहीं है। गलत काम किया तो वह बुरा है, लेकिन करके छिपाया तो यह उससे भी बुरा है। एक कलर फोटोग्राफी
सत्य : एक समय धर्म
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