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सत्य : एक समग्र धर्म
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जीवन, जगत और अध्यात्म के क्षेत्र में सैंकड़ों प्रश्न मनुष्य के
मनोमस्तिष्क में उमड़ते रहते हैं। कुछ प्रश्नों का समाधान पुस्तकों में मिल जाता है, कुछ प्रश्नों के उत्तर गुरु से मिल जाते हैं, लेकिन कुछ प्रश्न ऐसे भी होते हैं जिनका समाधान मनुष्य को स्वयं खोजना पड़ता है। इन प्रश्नों का उत्तर किसी शब्द से नहीं मिलता, न ही कोई गुरु इनका समाधान देने में समर्थ है। आत्म-बोध में ही सारा समाधान है। जिसे आत्म-बोध मिल जाता है उसका जीवन अध्यात्म की दिशा तय करने लगता है और जगत भी आध्यात्मिक हो जाता है।
प्रश्न तो कई होते हैं कुछ तर्क के, कुछ कुतर्क के और कुछ समझ के। आज मैं आपको एक ऐसा ही प्रश्न सौंपना चाहता हूँ–'सत्य क्या है ?' यह प्रश्न चिर प्राचीन और चिर नूतन है। धर्म के इतिहास में यह प्रश्न बार-बार उठा है कि 'सत्य क्या है ?' संभवतः यह प्रथम और अंतिम प्रश्न भी है। मनुष्य-जीवन की चूक यही है कि वह इस प्रश्न का समाधान मात्र शास्त्रों से पाना चाहता है। वह चाहता है कि कोई गुरु, कोई ऋषि, कोई संत उसे इस प्रश्न का उत्तर बता दे। जीवन भर वह सत्य की उधेड़बुन में लगा रहता है।
सत्य : एक समग्र धर्म
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