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मान रहे हो, वह मृग-मरीचिका है, लेकिन यह दुःख किन कारणों से है, यह जाना जा सकता है। जीवन में वे कौनसे निमित्त हैं, जिनसे दुःख, तनाव, चिंता उत्पन्न होती है, यह पता लगाया जा सकता है। तुम जब इन कारणों को जान जाते हो तो उन्हें रोका भी जा सकता है और इन कारणों को रोकने के उपाय भी किए जा सकते हैं। सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दृष्टि, सम्यक् स्मृति, सम्यक् कर्म, सम्यक् आजीविका और सम्यक् समाधि ही दुःख-निरोध के उपाय हैं। शुद्ध दर्शन से सम्यक ज्ञान मिलता है और सम्यक बोध से सम्यक् समाधि उपलब्ध होती है। हमारे जीवन का लक्ष्य भी यही है। ___अगर जन्म, जरा, रोग और मृत्यु दुःख हैं, तो सुख कहाँ है ? जब तक दुःख का बोध नहीं होगा, सुख नहीं मिलेगा। पंडित नेहरू ने कहा था'महावीर और बुद्ध ने दुःख का दर्शन दिया। भारत को दुःखवादी बताया, संसार को संतप्त और दुःखी ही कहा। लेकिन जब तक दुःख की पहचान नहीं होगी, सुख का अनुभव कैसे करोगे ! रात का अंधकार ही सूरज की कीमत जानता है। रोगी ही स्वास्थ्य का रहस्य समझता है। निराशा से ही आशा का जन्म होता है। अमावस्या ही पूनम का सौंदर्य समझती हैं। जब तक मनुष्य के मूल रोग (दुःख) की पहचान नहीं होगी, उपचार की औषधि का प्रभाव (सुख) कैसे मिलेगा, मनुष्य को अपनी मूर्छा, वासना को देखना होगा, तभी वह इनसे प्राप्त दुःखों से मुक्त हो सकेगा। अपनी दुष्पूर कामनाओं से ऊपर उठना होगा, तभी जीवन का सुख और सत्य उपलब्ध हो सकेगा।
धर्म, आखिर क्या है ?
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