Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 10
________________ पार्श्वनाथ और उनके शिष्यों का विहार पहले भगवान् महावीर को जैन धर्म का संस्थापक माना जाता था, लेकिन अब विद्वानों की खोज से यह प्रमाणित हो गया है कि महावीर के पूर्व भी जैन धर्म विद्यमान था। ___यद्यपि बौद्ध त्रिपिटकों में भगवान् पार्श्वनाथ का उल्लेख नहीं पाता, लेकिन उनके चातुर्याम संवर का उल्लेख पाया जाता है । जैन शास्त्रों के अनुसार पार्श्वनाथ का जन्म वाराणमी* (बनारस ) में हुआ था। उनकी माता का नाम वामा और पिता का नाम अश्वसेन था । पार्श्वनाथ ३० वर्ष तक गृहस्थ अवस्था में रहे, ७० वर्ष तक उन्होंने साधु जीवन व्यतीत किया, और १०० वर्ष की अवस्था में सम्मेदशिखर ( पारसनाथ हिल, हज़ारीबाग़) पर तप करने के पश्चात् निर्वाण पद पाया । पार्श्वनाथ पुरुषश्रेष्ठ (पुरिसादानीय ) कहे जाते थे । उनके अाठ प्रधान शिष्य ( गणधर ) थे और उन्होंने साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविकाओं के चतुर्विध संघ की स्थापना की थी। पार्श्वनाथ ने अपने साधु जीवन में साकेत, श्रावस्ति, कौशांबी, राजगृह, अामलकप्या, कांपिल्यपुर, अहिच्छत्रा, हस्तिनापुर आदि स्थानों में विहार किया था। __ पार्श्वनाथ के श्रमण पावापत्य (पासावच्चिज्ज) नाम से पुकारे जाते थे । प्राचारांग सूत्र में महावीर के माता-पिता को पार्श्वनाथ की परम्परा का * इस पुस्तक में उल्लिखित तीर्थ स्थानों के विशेष विवरण और उनकी पहचान के हवालों के लिये देखिये लेखक की 'लाइफ इन ऐंशियेंट इन्डिया ऐज़ डिपिक्टेड इन द जैन कैनन्स' नामक पुस्तक का पाँचवाँ भाग । ( ५ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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