Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 46
________________ उत्तरप्रदेश मार्ग बने हुए थे, अनेक शिल्पी और देश-विदेश के व्यापारी यहाँ वसते थे । यहाँ के लोग समृद्धिशाली, धर्मात्मा, पराक्रमी और दीर्घायु थे, तथा अनेक उनके पुत्र-पौत्र थे।" जैन परम्परा के अनुसार अयोध्या को श्रादि तीर्थ और आदि नगर माना गया है, और यहाँ के निवासियों को सभ्य और सुसंस्कृत बताया गया है। बुद्ध और महावीर के समय अयोध्या को साकेत कहा जाता था । साकेत के सुभूमिभाग उद्यान में विहार करते हुए महावीर ने जैन श्रमणों के विहार की मीमा नियत की थी। यहीं उन्होंने कोटिवर्ष के राजा चिलात को दीक्षा दी थी। बुद्ध ने भी साकेत में विहार किया था । ___इस नगरी को कोशला, विनीता, इक्ष्वाकुभूमि, रामपुरी, विशाखा आदि नामों से भी पुकारा गया है । अाजकल अयोध्या में ब्राह्मणों के अनेक तीर्थ बने हुए हैं । जिनप्रभ सूरि ने अपने विविधतीर्थकल्प में घग्घर (घाघरा) और मरयू नदी के सङ्गम पर 'स्वर्गद्वार' होने का उल्लेख किया है । रत्नपुरी धर्मनाथ तीर्थंकर की जन्मभूमि मानी जाती है। जिनप्रभ सूरि के ममय यह तीर्थ रत्नवाह नाम से पुकारा जाता था। जैन यात्रियों ने इसका गेइनाई नाम से उल्लेख किया है । आजकल यह स्थान फैज़ाबाद के पास सोहावल स्टेशन से एक मील उत्तर की ओर है। श्रावस्ति ( सहेट-महेट, ज़िला गोंडा) उत्तर कोशल या कुणाल जनपद की राजधानी थी । श्रावस्ति का दूसरा नाम कुणालनगरी था । श्रावस्ति और माकेत के बीच सात योजन (१ योजन=५ मील ) का अन्तर था। श्रावस्ति अचिरावती (राप्ती) नदी के किनारे थी। जैन सूत्रों में कहा गया है कि इस नदी में बहुत कम पानी रहता था; इसके बहुत से प्रदेश सूखे रहते थे, और जैन साधु इस नदी को पार कर भिक्षा के लिये जा सकते थे। बौद्ध सूत्रों से पता लगता है कि इस नदी के किनारे स्नान करने के अनेक स्थान बने हुए थे। नगर की वेश्यायें यहाँ वस्त्र उतार कर स्नान करती थीं। उनकी देखादेखी बौद्ध भिक्षुणियाँ भी स्नान करने लगीं, इस पर बुद्ध ने उन्हें वहाँ स्नान करने में गेका । अचिरावती में बाढ़ आने से लोगों का बहुतं नुक ( ३६ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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