Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 44
________________ उत्तरप्रदेश पालभिया जैन श्रमणापासको का केन्द्र था । यहाँ महावीर और बुद्ध ने चातुर्मास व्यतीत किया था। गोशाल यहाँ पत्तकालय उद्यान में ठहरे थे । बौद्ध सूत्रों में इसे पालवी कहा गया है । यह स्थान श्रावस्ति और राजगृह के वीच वनारस से बारह योजन दूर था । काशी से सटा हुअा वत्स जनपद था । बौद्ध सूत्रों में इसे वंश कहा गया है। वत्साधिपति उदयन का उल्लेख ब्राह्मण, बौद्ध और जैन ग्रन्थों में मिलता है। प्रयाग के इर्दगिर्द के प्रदेश को वत्स कहते हैं । कौशांवी वत्स की राजधानी थी। कौशांबी का उल्लेख महाभारत और गमायण में आता है। कहते हैं कि हस्तिनापुर के गङ्गा से नष्ट हो जाने पर राजा परीक्षित के उत्तराधिकारियों ने कौशांबी को अपनी राजधानी बनाया । बुद्ध और महावीर ने यहाँ विहार किया था। यहाँ कुक्कुटाराम, घोसिताराम, पावरिक, अम्बवन आदि उद्यानों का उल्लेख बौद्ध सूत्रों में प्राता है, जहाँ भगवान् बुद्ध ठहरा करते थे। कहा जाता है कि एक बार कौशांबी के बौद्ध भिक्षत्रों में बहुत झगड़ा हो गया; बुद्ध ने कौशांबी पहुँच कर भिक्षों को बहुत समझाया, परन्तु कोई फल न हुआ । कौशांवी जैनों का अतिशय क्षेत्र माना जाता है। यहाँ पद्मप्रभ तीर्थकर का जन्म हुआ था। यहीं महावीर की प्रथम शिष्या चन्दनबाला और रानी मृगावती श्रमण धर्म में दीक्षित हुई थीं । कहते हैं कि उज्जैनी के राजा प्रद्योत ने रानी मृगावती को पाने के लिये कौशांबी के राजा शतानीक पर चढ़ाई कर दी। शतानीक की अतिसार से मृत्यु हो गई । बाद में अपने पुत्र उदयन को राजगद्दी पर बैठा कर मृगावती ने महावीर से दीक्षा ले ली। आर्य सुहस्ति और आर्य महागिरि कौशांबी आये थे। बौद्ध ग्रन्थों से पता लगता है कि कौशांबी में बुद्ध भगवान् की रक्तचन्दन-निर्मित सुन्दर प्रतिमा थी, जिसे राजा उदयन ने अपने खास कारीगरों से बनवाया था। सम्राट अशोक ने यहाँ बौद्ध स्तूप निर्माण कराया था। इलाहाबाद से लगभग तीस मील की दूरी पर कोसम गाँव को प्राचीन ( ३७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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