Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 63
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ की थी। यहाँ के बोधिकों का उल्लेख महाभारत तथा जैन ग्रन्थों में याता है । ये लोग उजयिनी निवासियों को भगाकर ले जाते थे । चीनी यात्री हुयनमांग के समय मालवा विद्या का केन्द्र था और यहाँ अनेक मट बने हए थे । अवन्ति मालवा की राजधानी थी। यह दक्षिणापथ की मुख्य नगरी थी। अवन्ति का उल्लेख बौद्ध सूत्रों में याता है । ईसवी सन् की सातवीं-आठवीं सदी के पहले मालव अवन्ति के नाम से प्रख्यात था। यहाँ की मिट्टी काली होती थी, अतएव यहाँ बौद्ध साधुयों को जूते पहनने और स्नान करने की अनुमति प्राप्त थी। अवन्ति की पहचान मालवा, निमार और मध्यप्रदेश के कुछ हिस्सों से की जाती है। अवन्ति के पूर्व में उससे सटा हुअा अाकर देश था । अाकर की राजधानी विदिशा थी। आगे चलकर अवन्ति और पाकर क्रम से पश्चिमी और पूर्वी मालवा कहलाने लगे। उज्जयिनी उत्तर अवन्ति की राजधानी थी। राजा चण्डप्रद्योत यहाँ राज्य करता था । कुछ समय पश्चात् सम्राट अशोक का पुत्र कुणाल यहाँ का सूबेदार हुया । उज्जयिनी का दूसरा नाम कुणाल नगर बताया गया है। कुणाल के बाद राजा सम्प्रति का राज्य हुया । यहाँ जीवन्तस्वामी प्रतिमा के दर्शन के लिये प्रार्य सुस्ति का अागमन हुया था। यहाँ प्राचार्य चंडरुद्र, भद्रकगुप्त, आयरक्षित, आर्यभाषाढ़ आदि मुनियों ने भी विहार किया था। दिगम्बर जैन परम्परा के अनुसार चन्द्रगुप्त सम्राट ने यहाँ भद्रबाहु से दीक्षा ग्रहण कर दक्षिण की यात्रा की थी। श्वेताम्बर जैन परम्परा के अनुसार यहाँ कालकाचार्य ने राजा गर्दभिल्ल को सिंहासन से उतार कर उसके स्थान पर ईरान के शाहों को बैठाया था। बाद में राजा विक्रमादित्य ने अपना राज्य स्थापित किया। सिद्धसेन दिवाकर विक्रमादित्य की सभा के एक रत्न माने जाते थे। उज्जयिनी विशाला और पुष्पकरंडिनी नाम से भी प्रख्यात थी। किसी समय यहाँ बौद्धों का ज़ार था और यहाँ अनेक बौद्ध मठ बने हुए थे । यहाँ Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96