Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 74
________________ बरार-हैदराबाद-महाराष्ट्र-कोंकण-आन्ध्र-द्रविड-कर्णाटक-कुर्ग प्रादि के एक नेलक के बराबर होते थे । हुअन-साँग के समय यह नगर बौद्धों का केन्द्र था । स्वामी समंतभद्र की यह जन्मभूमि थी। पाठवीं शताब्दि में जैनों का यहाँ बहुत प्रभाव था । काँचीपुर चोल की राजधानी रही। कांचीपुर की पहचान मद्रास सूबे के कांजीवर नामक स्थान से की जाती है। ८: कर्णाटक - कर्णाटक का पुराना नाम कुन्तल है। महाराष्ट्र के दक्षिण में कनाड़ी भाषा का क्षेत्र कर्णाटक कहा जाता है । इसमें कुर्ग, मैसूर आदि प्रदेश सम्मिलित थे। जैन ग्रन्थों में कुडुक्क देश का अनेक जगह उल्लेख अाता है। राजा सम्प्रति के समय से इस देश में जैन धर्म का प्रचार हुआ । व्यवहारभाष्य में कुडुक्क प्राचार्य का उल्लेख पाता है। कुडुक की पहचान अाधुनिक कुर्ग से की जा सकती है । इस प्रदेश को कोडगू भी कहते हैं। ___ कर्णाटक में श्रवणबेलगोल दिगम्बर जैनों का प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे जैनबद्री, जैन काशी अथवा गोम्मट तीर्थ भी कहा जाता है। यहाँ बाहुबलि स्वामी की सत्तावन फ़ीट ऊँची मनोज्ञ मूर्ति है, जो दस-बारह मील से दिखाई देने लगती है । जैन मान्यता के अनुसार भद्रबाहु स्वामी और उनके शिष्य सम्राट चन्द्रगुप्त मुनि ने यहाँ आकर तप किया था। यहाँ लगभग पाँच सौ शिलालेख मौजूद हैं । विन्ध्यगिरि और चन्द्रगिरि नामक यहाँ दो पर्वत हैं । इस तीर्थ की स्थापना राजमल्ल नरेश के राजमंत्री सेनापति चामुण्डराय ने ईसवी सन् ६८३ के लगभग की थी। मूडविद्री होयसल काल में जैनियों का मुख्य केन्द्र था। यहाँ अनेक मंदिर और सुन्दर स्थान हैं । यहाँ पर पुरुष-प्रमाण बहुमूल्य प्रतिमाएँ हैं। प्राचीन ग्रन्थों के यहाँ भंडार हैं। कारकल मूडबिद्री से दस मील है । यहाँ बाहुबलि की विशाल प्रतिमा और Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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