Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 86
________________ kuR १७ ८१ पाटन ५२ पांडुवर्धन पाटलिपुत्र २१, २२, २९ पांड्य -पटना ६६ प्राकृत व्याकरण पाटलिपुत्र वाचना २२ प्राचीन वंश पाढ १९ पीइधम्मि पाणिनी ४७ पुन्नकलस पाताल लिंग २७ पुण्डरीक-शत्रुञ्जय पादलिप्त ६४ पुण्डवद्धणिया १७, पादुका ३ पुण्ड पारस पुण्डवर्धन (दो पुण्ड्व र्धन) -ईरान पुण्णपत्तिया परिहासय १७ पुन्नाट संघ पारसनाथ हिल (देखो सम्मेदशिखर) पुरीमताल (दो पुरीमताल) ४,११,३३ पालय १२ पुरी ४, ३० पालिताना ५१ -जगन्नाथ पुरी पावकगढ़ ५३ पुष्कर पावा (देखो अपापा) पुष्करावती पावरिक पुष्करंडिनी पार्श्वनाथ २, ५, ६, ७, ८, २९, -उज्जनी ३०, ३६, ४०, ४१ पुष्पचूला ४२, ५१, ५५, ६२ पुष्पदन्त पापित्य ५, ९ पुष्पपुर पावागिरि ५३ पुष्पभद्र पावागिरि (द्वितीय) ५८ पूर्णभद्र पाँच महाव्रत ६, ७ पूर्वाद्वार पांचाल १६, १९, ४२, ४३ पूसमित्तिज्जा -कहेलखंड पेढाल पांचाली (देखो द्रौपदी) पैठन पांडव ४६, ४८, ५०, ५१, -प्रतिष्ठान ५३, ६५, ६८ पोतनपुर पांडवचरित ५१ –प्रतिष्ठान पांडु मथुरा पोतलि -मदुरा पोलास Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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