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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
पुर जिले में दिकमाल स्टेशन से लगभग बाईम मील है ।
स्तवनिधि कोल्हापुर रियासत में, कोल्हापुर शहर से लगभग तीस मील है ।
श्रीक्षेत्रकुम्भोन कोल्हापुर रियामत में हातकलंगणा स्टेशन से लगभग चार मील है । गाँव में एक मन्दिर है ।
३: महाराष्ट्र महाराष्ट्र के अनेक रीति-रिवाजों का उल्लेख जैन छेदसूत्रों की टीकाटिप्पणियों में मिलता है । राजा सम्प्रति ने इस देश में जैनधर्म का प्रचार किया था । लेकिन आगे चलकर मालूम होता है कि यह प्रदेश जैनधर्म का खामा केन्द्र बन गया था।
प्रतिष्ठान या पोतनपुर महाराष्ट्र की राजधानी थी। बौद्ध ग्रन्थों में पोतन या पोतलि को अश्मक देश की राजधानी कहा है।
प्रतिष्ठान महाराष्ट्र का भूषण माना जाता था। यह नगर विद्या का केन्द्र था। यहाँ श्रमण - पूजा नाम का बड़ा भारी उत्सव मनाया जाता था । जैन ग्रन्थों से पता लगता है कि यहाँ पादलित सूरि ने पइहान के राजा की शिरोवेदना दूर की थी। कालकाचार्य ने यहाँ विहार किया था ! कहते हैं कि एक बार कालकाचार्य उज्जयिनी से यहाँ पधारे और मातवाहन (शालिवाहन) के आग्रह पर इन्द्र महोत्सव के कारण पयूषण पर्व की तिथि बदल कर पंचमी से चतुर्थी कर दी। जैन ग्रन्थों में प्रतिष्ठान को भद्रबाहु (द्वितीय) और वराहमिहिर का जन्म स्थान माना गया है ।
जिनप्रभ सूरि के समय यहाँ अड़सठ लौकिक तीर्थ थे । प्रतिष्ठान व्यापार का बड़ा केन्द्र था।
इसकी पहचान औरङ्गाबाद जिले के पैठन नामक स्थान से की जाती है ।
४: कोंकण कोंकण देश में जैन श्रमणों ने विहार किया था। यह देश परशुराम क्षेत्र के नाम से भी पुकारा जाता था । अत्यधिक वर्षा होने के कारण जैन
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