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पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखण्ड
है । कहते हैं यहाँ से सुवर्णभद्र आदि मुनि मोक्ष पधारे । यह तीर्थ भी अर्वाचीन मालूम होता है।
बुन्देलखण्ड चेदि जनपद की गणना जैनों के ार्य क्षेत्रों में की गई है । प्राचीन काल में यहाँ राजा शिशुपाल राज्य करता था । चेदि बौद्ध श्रमणों का केन्द्र था।
बुन्देलखण्ड के उत्तरी भाग को प्राचीन चेदि माना जाता है ।
शुक्तिमती चेदि देश की राजधानी थी। शुक्तिमती का उल्लेख महाभारत में मिलता है । सुत्तिवइया नामक जैन श्रमणों की शाखा थी।
बाँदा जिले के इर्दगिर्द के प्रदेश को शुक्तिमती माना जाता है ।
प्रारम्भ में मध्यप्रदेश में जैनधर्म का प्रचार बहुत कम था, लेकिन मालूम होता है आगे चल कर यहाँ बहुत से जैन तीर्थों का निर्माण हो गया ।
बुन्देलखण्ड के द्रोणगिरि, नैनागिरि और सोनागिरि को सिद्धक्षेत्र माना जाता है।
बुन्देलखण्ड की बिजावर रियासत के सेंदपा गाँव के समीप का पर्वत द्रोणगिरि माना जाता है। यहाँ से गुरुदत्त आदि मुनियों का मोक्षगमन बताया है । यहाँ चौबीस मन्दिर हैं; वार्षिक मेला भरता है ।
नैनागिरि क्षेत्र को रेसिन्दीगिरि बतलाया जाता है। कहते हैं यहाँ से वरदत्त आदि मुनियों ने मोक्ष लाभ किया । यह स्थान सागर जिले की ईशान सीमा के पास पन्ना रियासत में है । यहाँ वार्षिक मेला लगता है। . सोनागिरि में दो-चार को छोड़ कर शेष मन्दिर सौ सवा-सौ वर्ष के भीतर के जान पड़ते हैं । यह स्थान ग्वालियर के पास दतिया से पाँच मील है ।
कुंडलपुर, खजराहा, थोवनजी, पपौरा, देवगढ़, चन्देरी, अहारजी आदि अतिशय क्षेत्र माने जाते हैं ।
कुण्डलपुर दमोह से बीस मील ईशान कोण में है । मुख्य मन्दिर महावीर का है, और यहाँ महावीर जयन्ती का मेला भरता है।
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