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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
किसी समय खजराहा बुन्देलखण्ड की राजधानी थी । शिलालेखों में इसका नाम खज्जरवाहक पाता है। हुअन-साँग ने इसका वर्णन किया है । यह नगर चन्देलवंश के राजाओं के समय चरमोन्नति पर था । यहाँ करोड़ों रुपये की लागत के जैन मन्दिर बने हुए हैं, जो ईसवी सन् ६५० से लेकर १०५० तक के हैं । खजराहा में अनेक खण्डित जैन मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं। यहाँ का मन्दिर-समूह इस काल की कला का सर्वोत्कृष्ट उदाहरण है।
देवगढ़ जाखलौन स्टेशन से लगभग आठ मील की दूरी पर है । यहाँ लाखों रुपये की लागत के जैन मन्दिर बने हए हैं। यहाँ गुप्तकाल के लेख मौजूद हैं। यहाँ की शिल्पकला बहुत सुन्दर है । देवगढ़ को उत्तर भारत की जैनबद्री कहा जाता है ।
चन्देरी ललितपुर से बीस मील दूर है। यहाँ अत्यन्त मनोज्ञ जैन मन्दिर बने हुए हैं।
थोवनजी चंदेरी से नौ मील के फ़ासले पर है। पपौराजी क्षेत्र टीकमगढ़ से तीन मील है ।
अहारजी में सुन्दर जैन मूर्तियाँ हैं । यह स्थान टीकमगढ़ से पूर्व की ओर बारह मील है।
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