Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 68
________________ दक्षिण बरार-हैदराबाद-महाराष्ट्र-कोंकण-आन्ध्र-द्रविड-कर्णाटक कुर्ग आदि मध्यदेश से जैसे-जैसे जैन श्रमणों ने दक्षिण की ओर विहार किया, दक्षिण में शनैः-शनैः जैनधर्म का प्रसार होता गया । जैनों के साढ़े पचीस आर्य क्षेत्रों में दक्षिण के देशों के नाम नहीं, इससे मालूम होता है कि प्रारंभ में दक्षिण में जैनधर्म नहीं पहुंचा था । लेकिन धीरे-धीरे राजा सम्प्रति ने दक्षिणापथ को जीतकर उसके सामंत राजाओं को अपने वश में किया, और आगे चलकर आन्ध्र, द्रविड, कुडुक्क (कुर्ग) आदि देशों में जैनधर्म फैलाया। परिणाम यह हुआ कि दक्षिण में जैन उपासकों की संख्या बढ़ने लगी, और यहाँ जैन श्रमणों का सन्मान होने लगा । आगे चलकर तो दक्षिण में कुडुक्क प्राचार्य और गोल्ल आचार्य जैसे दिग्गज प्राचार्यों का तथा द्रविड संघ, पुन्नाट संघ आदि संघों का जन्म हुआ, एक से एक सुन्दर तीर्थों की स्थापना हुई, और दिगम्बर जैनों का यह केन्द्र बन गया । १: बरार विदर्भ का उल्लेख महाभारत में आता है । यहाँ गजा नल राज्य करता था। यह देश आजकल दक्षिण कोशल, गोंडवाना या बरार के नाम से पुकारा जाता है। कुण्डिननगर विदर्भ का मुख्य नगर था। इसका उल्लेख बृहदारण्यक उपनिषद् और महाभारत में आता है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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