Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 62
________________ पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुनरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखंड इसकी गणना शत्रुजय, सम्मेदशिखर, गिरनार और चन्द्रगिरि नामक तीर्थों के साथ की गई है। माध्यमिका ( मज्झमिया ) नाम की जैन श्रमणों की शाखा का उल्लेख कल्पसूत्र में मिलता है । यहाँ प्राचीन शिलालेख, सिक्के एवं बौद्ध स्तूपों के अवशेष उपलब्ध हुए हैं । . माध्यमिका की पहचान दक्षिण राजपूताने में चित्तौड़ के पाम नगरी नामक स्थान से की जाती है । उदयपुर में धुलेवाजी अथवा केसरियाजी जैन तीर्थ माना जाता है । यहाँ फाल्गुन बदी ८ को बड़ा मेला लगता है, और भगवान् पर मनों केसर चढ़ाई जाती है । भील ग्रादि जातियाँ भी इस तीर्थ को पूजती हैं। विजोलिया उदयपुर से लगभग ११२ मील है । इसका पुराना नाम विन्ध्यावलि था । यहाँ पाश्वनाथ का मन्दिर है । जोधपुर से मेड़ता रोड लाइन पर मेड़ता रोड जंक्शन के पाम फलोधी नाम का तीर्थ है । इस तीर्थ की कथा उपदेशसप्ततिका में आती है। यहाँ प्राचार्य देवसूरि का आगमन हुअा था । यहाँ पार्श्वनाथ की पढ़ाई हाथ लंबी मूर्ति है। विक्रम की १३-१६ शताब्दि में राणकपुर एक उन्नत और महान् नगर था। यहाँ धनाशा और रतनाशा नाम के दो भाइयों ने लाखों रुपया खर्च करके मन्दिरों का निर्माण किया था । मेवाड़ के महाराणा कुम्भा राणा के समय विक्रम संवत् १४३४ में इस तीर्थ के निर्माण का कार्य जारी था । अाज कल यह तीर्थ मारवाड़ और मेवाड़ की संधि पर विद्यमान है । ५ : मालवा मालव की गणना प्राचीन जनपदों में की गई है । यह देश जैन श्रमणों का केन्द्र था, और अवन्तिपति राजा सम्प्रति ने यहाँ जैन धर्म की प्रभावना Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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