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पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखंड
द्वारा प्रतिष्ठित विशाल मन्दिर है जिसके निर्माण में लाखों रुपये लगे थे । प्रभावकचरित में इम तीर्थ की उत्पत्ति दी हुई है।
म्हैसाणा से तारंगा हिल को रेल जाती है । तारंगा हिल स्टेशन से तीनचार मील के फ़ामले पर है ।
पावागिरि सिद्धक्षेत्रों में गिना जाता है । यहाँ से रामचन्द्र जी के पुत्र लव और कुश आदि पाँच करोड़ मुनियों के मोक्ष जाने का उल्लेग्व मिलता है । यह तीर्थ शत्रुजय की जोड़ का माना जाता है । पावकगढ़ का उल्लेख शिलालेखों में पाया जाता है। यह स्थान तोमरवंशी राजाओं के अधिकार में था ।
यहाँ लाखों रुपये की लागत के दिगम्बर जैन मन्दिर बने हुए हैं । पहले यह तीर्थ श्वेताम्बरों का था। यहाँ सुप्रसिद्ध मन्त्री तेजपाल ने मर्वतोभद्र नाम का विशाल मन्दिर बनवाया था। मात्र सुदी १३ से यहाँ तीन दिन तक मेला भरता है।
यह स्थान बड़ौदा से अटाईस मील के फासले पर चाँपानेर के पास है ।
स्तंभन तीर्थ की कथा सोमधर्मगणि की उपदेशसप्ततिका में आती है । चिन्तामणि पार्श्वनाथ का यहाँ प्रसिद्ध मन्दिर है। यहाँ अभयदेव सूरि ने विहार किया था।
स्तंभन तीर्थ की पहचान अाधुनिक खंभात से की जाती है ।
४: राजपूताना राजपूताने को मरुभूमि कहा जाता था । यहाँ शनैः-शनैः जैन धर्म का प्रसार हुअा।
मत्स्य देश का उल्लेख महाभारत में आता है। इस देश की गणना जैनों के साढ़े पच्चीम आर्य देशों में की गई है।
मत्स्य देश की पहचान अाधुनिक अलवर रियासत से की जाती है ।
वैराट या विराटनगर मत्स्य की राजधानी थी। बनवास के ममय यहाँ पांडवों ने गुम वाम किया था । यहाँ अशोक के शिलालेख पाये गये हैं । चीनी
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