Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 61
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ यात्री हुअन-सांग यहाँ पाया था। वैराट में बौद्ध मठों के ध्वंसावशेष उपलब्ध यहाँ के लोग वीरता के लिए प्रमिद्ध थे। पाइने-अकवर्ग में बैगट का उल्लेख आता है । अकबर बादशाह ने इस नगर को फिर से बमाया था । यहाँ ताँबे की बहुत मी खाने थीं। वैराट की पहचान जयपुर रियामत के वैगट नामक स्थान से की जाती है । राजपूताने का दूसरा प्राचीन स्थान पुष्कर था । अावश्यक चूर्णि में इसको तीर्थक्षेत्र बताया है । उजयिनी के राजा चंडप्रद्योत के ममय यह स्थान विद्यमान था। यहाँ पुष्कर तालाब में स्नान करने के लिये याजकल भी अनेक यात्री पाते हैं । यहाँ अनेक उत्तम घाट, धर्मशालाएँ और मन्दिर बने हुए हैं । पुष्कर अजमेर से लगभग ६ मील की दूरी पर है। भिल्लमाल या श्रीमाल में प्राचार्य वज्रस्वामी ने विहार किया था। यहाँ द्रम्म नाम का चाँदी का सिक्का चलता था । छठी शताब्दि से लेकर नौवीं शताब्दि तक यह स्थान श्रीमाल गुर्जरों की राजधानी थी । श्रीमाल उपमितिभवप्रपंचकथा के कर्ता सिद्धर्वि और माघ कवि की जन्मभमि थी। भिल्लमाल की पहचान जोधपुर रियामत में जमवन्तपुर के पाम भिनमाल नामक स्थान में की जाती है । अर्बद जैनों का प्राचीन तीर्थ है । यहाँ ऋषभनाथ और नेमिनाथ के विश्वविख्यात मन्दिर हैं, जिन्हें लाखों रुपये खर्च करके बनवाया गया था। इनमें से एक १०३२ ई० में विमलशाह का बनवाया हुआ है और दूसरा १२३२ ई. में तेजपाल का बनवाया हुया है । दोनों ही शिखर तक संगमरमर के बने हैं । जिनप्रभसूरि के समय यहाँ श्रीमाता, अचलेश्वर, वशिष्ठाश्रम आदि अनेक लौकिक तीर्थ विद्यमान थे । बृहत्कल्पभाष्य में अर्बुद और प्रभास तीर्थों पर उत्सव ( मंखडि ) मनाये जाने का उल्लेख आता है। अर्वद की पहचान मिरोही राज्य के अन्तर्गत ग्राबू पहाड़ से की जाती है । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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