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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
मान होता था । एक बार तो नगरी के सुप्रसिद्ध धनी अनाथपिंडक का मय माल-खजाना नदी में बह गया था | श्रावस्ति की बाढ़ का उल्लेख आवश्यकचूर्णि में भी मिलता है । जैन अनुश्रुति के अनुमार इस बाढ़ के १३ वर्ष बाद महावीर ने केवलज्ञान प्राप्त किया । __ श्रावस्ति का रामायण और जातकों में उल्लेख आता है । बुद्ध और महावीर के समय यह नगरी बहुत उन्नत दशा में थी। इन महात्माओं ने यहाँ अनेक चातुर्मास व्यतीत किये थे । अनाथपिंडक के निर्माण किये हुए जेतवन में बुद्ध ठहरा करते थे। सूत्र और विनयपिटक के अधिकांश भाग का उन्होंने यहीं प्रवचन किया था । श्रावस्ति बौद्धों का बड़ा केन्द्र था । यहाँ के अनाथपिंडक और मृगारमाता विशाखा बुद्ध के बड़े प्रशंमक और प्रतिष्ठाता थे । आर्य स्कंद और गोशाल ने यहाँ विहार किया था । गोशाल की उपासिका हालाहला कुम्हारी यहीं रहती थी। पार्श्वनाथ के अनुयायी केशीकुमार और महावीर के अनुयायी गौतम गणधर में यहाँ सैद्धांतिक चर्चा हुई थी। महावीर को केवलज्ञान होने के १४ वर्ष पश्चात् यहाँ के कोष्ठक चैत्य में प्रथम निहब की स्थापना हुई।
जैन ग्रन्थों के अनुसार श्रावस्ति संभवनाथ की जन्मभूमि थी । अाजकल यह तीर्थ विच्छिन्न है । बौद्र सूत्रों के अनुसार श्रावस्ति के चार दरवाज़े थे, जो उत्तरद्वार, पूर्वद्वार, दक्षिणद्वार और केवट्टद्वार के नाम से पुकारे जाते थे । विविधतीर्थकल्प में श्रावस्ति में एक मन्दिर और रक्त अशोक वृक्ष के होने का उल्लेख है । श्रावस्ति महेटि नाम से भी कहो जाती थी। __ जिनप्रभ सूरि के अनुसार यहाँ समुद्रवंशीय राजा राज्य करते थे। ये बुद्ध के परम उपासक थे, और बुद्ध के सन्मान में वरघोड़ा निकालते थे। श्रावस्ति में अनेक प्रकार का चावल पैदा होता था ।
आजकल श्रावस्ति चारों ओर से जंगल से घिरी हुई है। यहाँ बुद्ध की एक विशाल मूर्ति है जिसके दर्शन के लिये बौद्ध लोग बरमा आदि सुदूर देशों से आते हैं। यह स्थान बलरामपुर से मान कोस की दूरी पर है और एक मील तक फैला हुआ है।
श्रावस्ति से पूर्व की ओर केकय जनपद था, जो उत्तर के केकय से भिन्न है । जैन सूत्रों में केकय के आधे भाग को आर्यक्षेत्र माना गया है, इससे पता
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