Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 53
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ भाषांतर है । आजकल भी यह वारन नाम से प्रसिद्ध है । यहाँ प्राचीन सिक्के उपलब्ध हुए हैं। कुरु या कुरुजांगल का महाभारत में अनेक जगह उल्लेख पाता है । यहाँ के लोग बहुत बुद्धिमान् और स्वस्थ माने जाते थे। भगवान बुद्ध का उपदेश सुनकर यहाँ बहुत-से लोग उनके अनुयायी बने थे । कुरुक्षेत्र या स्थानेश्वर के इर्दगिर्द के प्रदेश को कुरुदेश माना जाता है | जातक ग्रन्थों के अनुसार कुरुदेश की राजधानी इन्द्रप्रस्थ (दिल्ली) थी, और यह यमुना के किनारे बसी हुई थी । राजा युधिष्ठिर की यह मुख्य नगरी थी। ___ जैन सूत्रों के अनुसार कुरु की राजधानी हस्तिनापुर थी। हस्तिनापुर का दूसरा नाम नागपुर था । वसुदेवहिण्डी में इसे ब्रह्मस्थल नाम से कहा गया है । यह स्थान जैन तीर्थकर, चक्रवर्ती तथा पांडवों की जन्मभूमि माना जाता है । इस नगर की गणना अतिशय क्षेत्रों में की गई है । हस्तिनापुर में महावीर द्वारा शिवराजा को दीक्षा दिये जाने का उल्लेख जैन सूत्रों में मिलता है । आजकल यह नगर उजाड़ पड़ा है। जङ्गल में जैन नशियाँ बनी हुई हैं, जहाँ तीर्थकरों की चरण-पादुकाएँ हैं । यह स्थान मेरठ जिले में मवाने के पास इसी नाम से प्रसिद्ध है । अाजकल यहाँ खुदाई चल रही है । इसके अासपास खादर है, सरकार इसे खेती करने योग्य बनाने का उद्योग कर रही है। Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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