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पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरात-राजपूताना-मालवा-बुन्देलखंड
जिसके दर्शन के लिये लोग दूर-दूर से प्राते थे। फाहियान के समय यहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार था।
वीतिभयपट्टन सिणवल्लि के अन्तर्गत था । सिणवल्लि एक बड़ा विकट रेगिस्तान था, जहाँ शुधा-तृपा से पीड़ित यात्री लोगों को अक्सर प्राणों से हाथ धोना पड़ता था । संभवतः पाकिस्तान में मुज़फ्फरगढ़ जिले के मनावन या सिनावन के आसपास का प्रदेश मिणवल्लि कहा जाता हो ।
वीतिभय की पहचान पाकिस्तान में शाहपुर ज़िले के भेरा नामक स्थान से की जा सकती है । इसका पुराना नाम भद्रवती बताया जाता है । यहाँ विन्झि नामक गाँव के पास बहुत से खंडहर पाये गये हैं, जिनसे पता लगता है कि प्राचीन काल में यह स्थान बहुत उन्नत दशा में था ।
२: काठियावाड़ मालूम होता है कि गुजरात और काठियावाड़ में शनैः-शनैः जैन धर्म का प्रसार हुअा । जैन ग्रन्थों में सौराष्ट्र (काठियावाड़) का उल्लेख महाराष्ट्र, द्रविड़, आन्ध्र और कुडुक्क (कुर्ग) देशों के साथ किया गया है, जहाँ परम धार्मिक सम्प्रति राजा ने अपने भटों को भेजकर जैन धर्म का प्रचार किया । आगे चलकर राजा कुमारपाल के समय गुजरात में जैनधर्म काफ़ी फूला फला।
सौराष्ट्र की गणना जैनों के साढ़े पच्चीस आर्य देशों में की गई है । जैन ग्रन्थों के अनुसार यहाँ कालकाचार्य ईरान के ६६ शाहों को लेकर आये थे। सौराष्ट्र व्यापार का बड़ा केन्द्र था ।
द्वारवती सौराष्ट्र की मुख्य नगरी थी। इसका दूसरा नाम कुशस्थली था । द्वारका का वर्णन जैन सूत्रों में आता है । पहले कहा जा चुका है कि जरासंध के भय से यादव लोग मथुरा छोड़कर यहाँ अा बसे थे। जैन ग्रन्थों में द्वारका को बानर्त, कुशार्त, सौराष्ट्र और शुष्कराष्ट्र की राजधानी कहा है। द्वीपायन ऋषि द्वारा द्वारका के विनाश होने का उल्लेख ब्राह्मण और जैन ग्रन्थों में मिलता है । यहाँ कादंबरी नाम की एक गुफ़ा थी । उत्तर की द्वारका से यह भिन्न है।
कुछ लोग जूनागढ़ को ही प्राचीन द्वारका मानते हैं । अाजकल यह स्थान वैष्णवों का परम धाम माना जाता है ।
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