Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 54
________________ w पंजाब-सिन्ध-काठियावाड़-गुजरातराजपूताना-मालवा-बुन्देलखंड १ : पंजाब-सिन्ध मालूम होता है कि निर्दोष खान-पान की सुविधा न होने के कारण पंजाब और सिन्ध में जैनधर्म का इतना प्रचार नहीं हो सका जितना अन्य प्रदेशों में हुआ । सिन्धु देश के विषय में छेदसूत्रों में कहा है कि यदि दुष्काल. विरुद्ध राज्यातिक्रम या अन्य किसी अपरिहार्य आपत्ति के कारण वहाँ जाना पड़े तो यथाशीघ्र वहाँ से लौट आना चाहिये । क्योंकि वहाँ भक्ष्याभक्ष्य का विचार नहीं, लोग मांस और मद्य का सेवन करते हैं, तथा पाखण्डी साधु और साध्वी वहाँ निवास करते हैं। __ प्राचीन जैन ग्रन्थों में गंधार का उल्लेख अाता है । बौद्ध सूत्रों में गंधार को उत्तरापथ का प्रथम जनपद बताया गया है। तक्षशिला और पुष्करावती गंधार देश की क्रम से पूर्वी और पश्चिमी राजधानियाँ थीं । जातक ग्रन्थों के अनुसार तक्षशिला समूचे भारत का विद्याकेन्द्र था, और यहाँ लाट, कुरु, मगध, शिवि आदि दूर-दूर देशों के विद्यार्थी पड़ने अाते थे। प्रसिद्ध वैयाकरणी पाणिनी और प्रख्यात वैद्यराज जीवक ने यहीं विद्याभ्यास किया था। जैन ग्रन्थों में तक्षशिला को बहली देश की राजधानी बताया गया है । जैन परम्परा के अनुसार, ऋषभदेव ने अयोध्या का राज्य भरत को और बहली का राज्य वाहुबलि को सौंपकर दीक्षा ग्रहण की थी। बाद में चलकर भरत और बाहुबलि दोनों में युद्ध हुआ और बाहुबलि ने भी दीक्षा ग्रहण कर ली। ( ४७ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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