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उत्तरप्रदेश
ग्रौर मीठे पानी के सात कंड थे जिनमें स्नान करने से स्त्रियाँ पत्रवती होती थीं। नगरी के बाहर और भीतर अनेक कुएँ, बावड़ी आदि बने थे जिनमें नहाने से कोढ़ आदि रोग शान्त हो जाते थे। यहाँ अनेक औषधियाँ मिलती थीं, तथा बहुत से तीर्थस्थान थे।
अहिच्छत्रा की पहचान बरेली जिले में रामनगर नामक स्थान से की जाती है । यहाँ बहुत से पुराने मिक्के और मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं, तथा प्राचीन खंडहर पड़े हुए हैं।
दक्षिण पांचाल में पूर्व की ओर कान्यकुब्ज नाम का समृद्ध नगर था। यह इन्द्रपुर, गाधिपुर, महोदय और कुशस्थल नामों से भी पुकारा जाता था ।
कान्यकुब्ज सातवीं सदी से लेकर १०वीं सदी तक उत्तर भारत के साम्राज्य का केन्द्र और समूचे भारत का मुख्य नगर था। चीनी यात्री हुअन-सांग के यागमन के समय यहाँ राजा हर्षवर्धन का राज्य था। उस समय यह नगर शूरसेन में शामिल था। ___ कान्यकुब्ज की पहचान यमुना के पश्चिमी किनारे पर स्थित कन्नौज से की जाती है।
जैन सूत्रों में अंतरंजिया नगरी का उल्लेख आता है। अंतरंजिया जैन श्रमणों की शाखा थी, इससे पता लगता है कि यह स्थान जैनों का केन्द्र था । गेहगुप्त प्राचार्य ने यहाँ छठे निह्नव की स्थापना की थी। श्राइने अकवरी में इसे कन्नौज का परगना बताया गया है ।
__ अंतरंजिया की पहचान एटा जिले के अंतरंजिया नामक खेड़े से की जाती है । यह स्थान काली नदी पर है ।
संकिस्स अथवा संकिस बौद्धों का तीर्थ स्थान है। यहाँ अशोक ने स्तम्भ बनवाया था। फ़ाहियान और हुअन-सांग यहाँ आये थे। जैन कवि धनपाल की यह जन्मभूमि थी। यह स्थान आजकल इसी नाम से प्रसिद्ध है और काली नदी पर बसा है । यहाँ बहुत से सिक्के और ध्वंसावशेष मिले हैं ।
कुशात की गणना जैनों के माढ़े पच्चीस आर्य देशों में की गई है । जैन
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