Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 30
________________ बिहार - नेपाल - उड़ीसा-बंगाल - घरमा साथ इस नगर का घनिष्ठ सम्बन्ध था । राजगिर से ७ मील दूरी पर अवस्थित बड़ागाँव को प्राचीन नालन्दा माना जाता है। • उद्दण्डपुर अथवा दण्डपुर का उल्लेख जैनसूत्रों में आता है । मंखलि पत्र गोशाल ने यहाँ विहार किया था। महाभारत में भी इस नगर का उल्लेख किया गया है। कहते हैं यहाँ बहुत से दण्डी साधु रहते थे, इसलिये इस स्थान का नाम दण्डपुर पड़ा । दण्डपुर को पहचान बिहार शरीफ़ से की जाती है । तुङ्गिया नगरी में अनेक श्रमणोपासकों के रहने का उल्लेख अाता है । कल्पसूत्र में तुङ्गिक नामक जैन श्रमणों के गण का उल्लेख मिलता है, इससे मालूम होता है कि यह नगर जैन श्रमणों का केन्द्र रहा होगा । १८वीं सदी के जैन यात्री बिहार शरीफ़ को प्राचीन तुङ्गिया मानते हैं । बिहार से ४ मील पर तुङ्गीगाम ही सम्भवतः प्राचीन तुङ्गिया हो सकता है । पावा अथवा मध्यम पावा में महावीर ने निर्वाण लाभ किया था । जंभियगाम से लौट कर उन्होंने यहाँ महासेन उद्यान में अन्तिम चौमासा व्यतीत किया । जम्भियगाम* और पावा के बीच बारह योजन का फासला था । जिनप्रभ सूरि के कथनानुसार महावीर के निर्वाणपद पाने के पूर्व यह नगरी अपापा कही जाती थी, बाद में इसका नाम पापा हो गया । दिवाली पर यहाँ बड़ा मेला लगता है, जिसमें जैन यात्री दर-दर से अाते हैं । यहाँ जलमन्दिर में महावीर के गणधर गौतम और सुधर्मा की पादुकायें बनी हुई हैं। बिहार से ७ मील के फासले पर पावापुरी को प्राचीन पावा माना जाता है। गोब्बरगाम में महावीर ने विहार किया था । महावीर के तीन गणधरों * जंभियगाम और ऋजुवालिका नदी के विषय में जानने के लिये देखिये मुनि न्यायविजय जी का 'जैन तीर्थो नो इतिहास', पृ. ४६५-६. ( २३ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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