Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 39
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ और हुअन-मांग यहाँ आये तो यहाँ बौद्ध धर्म फैला हुअा था। गौड़ देश में शम के कपड़े अच्छे बनते थे । जैन सूत्रों के अनुसार वंग देश की गजधानी ताम्रलिप्ति थी। महाभारत में इम नगरी का उल्लेख पाता है । जैन ग्रन्थों के अनुसार यहाँ विद्युच्चर मुनि ने मुक्ति पाई थी। ताम्रलिमि व्यापार का बड़ा केन्द्र था, और यहाँ जल-स्थल मार्ग से व्यापार होता था । यहाँ का कपड़ा बहुत अच्छा होता था । व्यापारी लोग यहाँ से जहाज़ में बैठकर लंका, जावा, चीन आदि देशों को जाते थे । हृयन-मांग के समय यहाँ अनेक बौद्ध मठ विद्यमान थे । रूपनारायण नदी के पश्चिमी किनारे पर स्थित तामलुक का प्राचीन ताम्रलिनि माना जाता है। __ जैन सूत्रों में लाद अथवा राढ देश की गणना माढ़े पचीम आर्य देशों में की गई है । यह देश पहले अनार्य देशों में गिना जाता था, लेकिन मालूम होता है महावीर के विहार के पश्चात् यह आर्य क्षेत्र माना जाने लगा । लाढ के विषय में पहले कहा जा चुका है। यहाँ महावीर ने अनेक कष्ट महे थे । लाट को सुह्म भी कहा गया है। भगवती सूत्र में सुझोत्तर ( संभुत्तर–सुह्म का उत्तरी भाग) की गणना प्राचीन १६ जनपदों में की गई है। लाढ वजभूमि ( वृजियों की भूमि ) और सुब्भभूमि ( मुझ ) नामक दो प्रदेशों में विभक्त था । ___ जैन सूत्रों के अनुसार कोटिवर्ष लाढ देश की राजधानी थी। कोडियरिमिया नामक जैन श्रमणों की शाखा थी। कोटिवर्ष के राजा किरात का उल्लेख जैन सूत्रों में आता है। गुम-कालीन शिलालेखों में इम नगर का उल्लेख मिलता है। ____कोटिवर्ष की पहचान दीनाजपुर जिले के बानगढ़ नामक स्थान से की जाती है। . दढभूमि लाढ देश का एक भाग था । यहाँ अनेक म्लेच्छ बमते थे । दढभूमि की पहचान आधुनिक धालभूम से की जाती है । ( ३२ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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