Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 40
________________ बिहार-नैपाल-उड़ीसा-बंगाल-बरमा धन्यकटक में जैनों के १३ वें तीर्थंकर का दीक्षा के बाद पहला पारण हुया था। इसकी पहचान बालासर जिले के कोपारी नामक स्थान से की जाती हैं । पुरिमताल, लोहग्गला राजधानी, उन्नाट और गोभूमि का उल्लेग्य महावीर की विहार-चर्या में आ चुका है। पुरिमताल की सीमा पर सालाटवी नामक चोरों का एक गाँव था । पुरिमताल की पहचान मानभूम के पास पुरुलिया नामक स्थान से की जा सकती हैं । दूसरा पुरिमताल अयोध्या का शाखानगर था । कोई लोग प्रयाग को पुरिमताल कहते हैं । लोहग्गला की पहचान छोटा नागपुर डिवीज़न के उत्तर-पश्चिम में लोहरडग्गा नामक स्थान से की जा सकती है। उन्नाट नगर का उल्लेख महाभारत में मिलता है । गोभूमि में अनेक गायें चरने के लिये आती थीं, इसलिये इस जगह का नाम गोभूमि रक्खा गया । इसकी पहचान आधुनिक गोमोह से की जा सकती है। खब्बड अथवा दासी खब्बड नामक जैन श्रमणों की शाखा का उल्लेख जैन सूत्रों में मिलता है। इमकी पहचान पश्चिमी बंगाल में मिदनापुर जिले के पास खर्वट नामक स्थान से की जाती है। वर्धमानपुर नगर में विजयवर्धमान नामक उद्यान-स्थित मणिभद्र यक्ष के मन्दिर में महावीर भगवान् ठहरे थे । * लोहरडग्गा मुंडा भाषा का शब्द है । 'रोहोर' का अर्थ है 'सूखा' और 'ड' का अर्थ है 'पानी' । इस स्थान पर पानी का एक झरना था जो बाद में सूख गया । इस कारण इस स्थान का नाम 'लोहरडग्गा' पड़ा । देखिए, एम्० मी० रॉय, 'द मुण्डा ऐण्ड देअर कन्ट्री', पृष्ठ १३३. ( ३३ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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