Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 41
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ वर्धमानपुर की पहचान वर्दवान से की जा सकती है । पुण्ड्रवर्धन उत्तरी बंगाल का हिस्मा था। पुण्डवद्धणिया जैन श्रमणों की शाखा थी । यहाँ गायों को खाने के लिए पौंडे दिये जाते थे; यहाँ की गायें मरखनी होती थीं । वरेन्द्र पुण्ड्रवर्धन का प्रमुख नगर था । हुअन सांग ने यहाँ दिगम्बर निर्गन्थों के पाये जाने का उल्लेख किया है। पुण्ड्रवर्धन की पहचान बोगरा जिले के महास्थान नामक प्रदेश से की जाती है । यह उत्तरापथ के पुण्ड्रवर्धन से भिन्न है । खामलिजिया ( या कोमलीया) जैन श्रमणों की शाखा थी। कोमला की पहचान पूर्वीय बङ्गाल में चटगाँव जिले के कोमिल्ला नामक स्थान से की जा सकती है। ५: बरमा सुवर्णभूमि ( वरमा ) में जैन श्रमणों ने विहार किया था । जैन ग्रन्थों से पता लगता है कि प्राचार्य कालक उजयिनी से सुवर्णभूमि जाकर सागरखमण सं मिले । इससे पता लगता है कि जैन श्रमणों का यहाँ प्रवेश हुअा था । मुवर्णभूमि व्यापार का बड़ा केन्द्र था। ( ३४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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