Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 37
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ ३ : उड़ीसा कलिंग देश का नाम अंग और बंग के माथ आता है। वर्तमान उड़ीसा को कलिंग माना जाता है । उड़ीमा को प्रोड या उत्कल नाम से भी कहा जाता था। जातक ग्रन्थों में दन्तपुर, महाभारत में राजपुर, महावस्तु में सिंहपुर और जैन सूत्रों में कांचनपुर को कलिंग की राजधानी बताया है। मानवीं सदी में कलिंगनगर भुवनेश्वर के नाम में प्रसिद्ध हुया, जो याजनक इमी नाम प्रख्यान है। कांचनपुर में जैन श्रमणा ने विहार किया था। यह नगर व्यापार का केन्द्र था, और यहाँ के व्यापारी लङ्का तक जाते थे। याधुनिक भुवनेश्वर को प्राचीन कांचनपुर माना जाता है। ___पुरी ( जगन्नाथपुरी) उड़ीसा की दूसरी मुख्य नगरी थी। यह नगरी जैन और बौद्ध धर्म का केन्द्र थी। यहाँ जीवन्तस्वामी-प्रतिमा थी, और प्राचार्य वज्रस्वामी ने यहाँ विहार किया था । उस समय यहाँ बौद्ध राजा राज्य करता था; जैन और बौद्धों में वैमनस्य रहता था । जैनों की मान्यता के अनुसार पुरी पहले पार्श्वनाथ का नीर्थ था । अाजकल यह तीर्थ विच्छिन्न है । पुरी व्यापार का बड़ा केन्द्र था, और यहाँ जलमार्ग से माल अाता-जाता था । अाजकल यहाँ ग्थयात्रा का बड़ा उत्सव मनाया जाता है। भुवनेश्वर स्टेशन में लगभग चार मील पर उदयगिरि और खण्डगिरि नाम की प्राचीन पहाड़ियाँ हैं, जिन्हें काट-काट कर सुन्दर गुफ़ाएँ बनाई गई हैं। इनमें लगभग सौ जैन गुफ़ाएँ हैं जो मूर्तिकला की दृष्टि से महत्त्व की हैं । ये गुफ़ाएँ ईसवी मन के ५०० वर्ष पूर्व के पहले से लेकर ईसवी सन् ५०० तक की बताई जाती हैं। प्रसिद्ध हस्तिगुफ़ा यहीं पर है जिसमें सम्राट् खारवेल ( ईसवी मन् के १६१ वर्ष पूर्व ) का शिलालेख है । सम्राट् खारवेल जैनधर्म का अनुयायी था, और उसने मगध से जिन-प्रतिमा लाकर यहाँ स्थापित की थी। उदयगिरि का प्राचीन नाम कुमारी पर्वत है; यहाँ मम्राट वारवेल के ( ३० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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