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बिहार-नैपाल-उड़ीसा-बंगाल-बरमा
में ज्ञातृखएड नाम का सुन्दर उद्यान था, जहाँ महावीर ने दीक्षा ग्रहण की थी। इस उद्यान की गणना ऊर्जयन्त और सिद्धशिला नामक पवित्र क्षेत्रों के माथ की गई है।
अाधुनिक बसुकुण्ड को कुण्डपुर माना जाता है ।
वैशाली का दूसरा महत्त्वपूर्ण स्थान वाणियगाम था । वैशाली और वाणियगाम के बीच गंडकी नदी बहती थी । यहाँ अानन्द यादि अनेक ममृद्ध जैन श्रमणोपासक रहते थे ।
अाधुनिक बनिया को वाणियगाम माना जाता है।
वाणियगाम के उत्तर-पूर्व में कोल्लाग था । यहाँ अानन्द श्रावक के मगेसम्बन्धी रहते थे। दीक्षा के पश्चात् महावीर ने यहाँ प्रथम भिन्ना ग्रहण की थी।
बसाढ़ के उत्तर-पश्चिम में वर्तमान कोल्हुअा को कोल्लाग माना जाता है । नालन्दा के समीपवर्ती कोल्लाग से यह भिन्न है ।
कोल्लाग के पास अहियगाम नाम का गाँव था; इसे वर्धमान भी कहते थे । यहाँ वेगवती (गण्डकी) नाम की नदी बहती थी। शूलपाणि यक्ष का यहाँ बड़ा मन्दिर था। महावीर ने अठियगाम में प्रथम चातुर्मास व्यतीत किया था ।
वैशाली के पास आमलकप्या नाम का नगर था जहाँ पार्श्वनाथ और महावीर ने विहार किया था ।
२: नेपाल नेपाल में जैन और बौद्ध श्रमणों ने विहार किया था। अाजकल भी यहाँ वाद्ध धर्म का बहुत प्रचार है। श्वेताम्बर परम्परा के अनुसार, पाटलिपुत्र में दुर्भिक्ष पड़ने पर भद्रबाहू, स्थूलभद्र तथा अन्य अनेक जैन प्राचार्यों ने यहाँ विहार किया था।
यहाँ सम्राट अशोक के निर्माण किये हुए प्राचीन स्तूप मिले हैं । नेपाल का राजा अंसुवर्मा लिच्छवि वंश का था ।
नैपाल की पहचान आधुनिक नेपाल राज्य से की जाती है। यह जनकपुर से १२० मील की दूरी पर है ।
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