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इसके चारों ओर गहरी खाई थी। चक्र, गदा, मुसुण्ढी ( एक प्रकार की गदा), शतघ्नी ( तलवार अथवा भाले के समान चलाया जाने वाला यन्त्र ), कपाट आदि के कारण दुष्प्रवेश थी। चारों ओर से यह परकोटे से घिरी थी। कपिशीर्षक ( कंगूरे ), अटारी, गोपुर तथा तोरण आदि से शोभायमान थी । अनेक वणिक तथा शिल्पी यहाँ माल बेचने आते थे । सुन्दर यहाँ की मड़कें थीं, और हाथी,
घोड़े, रथ, पैदल तथा पालकियों के गमनागमन से शोभित थीं।" चम्पा नगरी में पूर्णभद्र यक्ष का एक प्राचीन चैत्य था, जहाँ महावीर ठहरा करते थे। यह चैत्य ध्वजा, छत्र और घण्टियों से मण्डित था, वेदिका से शोभित था। भूमि यहाँ की गोबर से लिपी हुई थी, गोशीर्ष चन्दन के थापे लगे हुए थे, चन्दन-कलश रक्खे हुए थे, द्वार पर तोरण बँधी थी, सुगन्धित मालाएँ लटकी हुई थीं, रङ्ग-बिरंगे सुगन्धित पुष्य बिखरे हुए थे, सर्वत्र धूप महक रही थी, तथा नट, नर्तक, गायक, वादक आदि का यह निवास-स्थान था।
बौद्ध सूत्रों से पता लगता है कि चम्पा में गर्गरा नाम की एक पुष्करिणी थी। इसके किनारे सुन्दर चम्पक के वृक्ष लगे थे, जिन पर सुगंधित श्वेत रङ्ग के फूल खिलते थे।
कहते हैं कि राजा श्रेणिक के मरने पर राजा कुणिक को राजगृह में रहना अच्छा न लगा, अतएव उसने चम्पक के सुन्दर वृक्षों को देख कर चम्पा नगर बमाया । राजा कूणिक का अपनी रानियों समेत भगवान् महावीर के दर्शन के लिये जाने का विस्तृत वर्णन औपपातिक सूत्र में आता है ।
चम्पा व्यापार का बड़ा केन्द्र था । यहाँ के व्यापारी माल बेचने के लिये मिथिला, अहिच्छत्रा, सुवर्णभूमि आदि दूर-दूर स्थानों को जाते थे। चम्पा और मिथिला में साठ योजन का अन्तर था ।
भागलपुर के पास वर्तमान नाथनगर को प्राचीन चम्पा माना जाता है।
चम्पा का शाखानगर ( सबर्ब ) पृष्ठपम्पा था। यह चम्पा के पश्चिम में था | महावीर ने यहाँ चातुर्मास किया था ।
जैन ग्रन्थों में मन्दिर या मन्दार को पवित्र तीर्थ माना गया है । इसकी गणना सिद्धक्षेत्रों में की जाती है । ब्राह्मण पुराणों में भी मन्दार का उल्लेख आता है ।
इमकी पहचान भागलपुर से दक्षिण की अोर तीस मील की दूरी परमं दार
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