Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 31
________________ . भारत के प्राचीन जैन तीर्थ की यह जन्मभूमि थी। यह स्थान राजगृह और चम्पा के बीच में था। अंग एक प्राचीन जनपद था । वस्तुतः बुद्ध के समय अंग मगध के ही अधीन था । इसीलिए प्राचीन ग्रन्थों में अंग-मगध का एक साथ उल्लेख किया गया है । रामायण के अनुसार यहाँ शिवजी ने अंग ( कामदेव) को भस्म किया था, अतएव इम स्थान का नाम अंग पड़ा । जैन ग्रन्थों में अंग का उल्लेख सिंहल, बर्बर, किरात, यवनद्वीप, आरवक, रोमक, आलसन्द और कच्छ के माथ किया गया है । __ अंग देश मगध के पूर्व में था। इसकी पहचान भागलपुर जिले से की जानी है। चम्पा अंग देश की राजधानी थी। जैन ग्रन्थों के अनुसार राजा दधिवाहन यहाँ राज्य करता था। चम्पा का उल्लेख महाभारत में आता है । इसका दमरा नाम मालिनी था । जैन सूत्रों में चम्पा की गणना मम्मेदशिखर आदि पवित्र तीर्थों में की गई है। महावीर, बुद्ध तथा उनके शिष्यों ने चम्पा में अनेक बार विहार किया था और अनेक महत्त्वपूर्ण सूत्रों का प्रतिपादन किया था । यहाँ रहकर शय्यांभव सूरि ने दशवैकालिक नामक जैन सूत्र की रचना की थी। चम्पा की गणना मिद्धक्षेत्रों में की गई है। ग्रौपपातिक सूत्र में चम्पा का वर्णन करते हुए कहा है : "चम्पा नगरी अतीव समृद्धिशाली थी, प्रजा यहाँ की खुशहाल थी, मैकड़ों-हज़ारों हलों द्वारा यहाँ की जुताई होती थी, नगरी के आसपास अनेक गाँव थे। यह नगरी ईख, जौ, चावल आदि धान्य, तथा गाय, भैंस, मेढ़े आदि धन से समृद्ध थी । यहाँ सुन्दर चैत्य तथा वेश्यात्रों के अनेक भवन थे। नट, नर्तक, बाजीगर, पहलवान, मुष्टियुद्ध करनेवाले, कथावाचक, रास-गायक, बाँस की नोक पर खड़े होकर तमाशा दिखानेवाले, चित्रपट दिखाकर भिक्षा माँगनेवाले तथा वीणा-वादक श्रादि लोग यहाँ रहते थे। यह नगरी बाग़-बगीचे, कुएँ, तालाब, बावड़ी श्रादि से मण्डित थी। ( २४ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96