Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

View full book text
Previous | Next

Page 26
________________ बिहार-नेपाल-उड़ीसा-बंगाल -बरमा -बिहार ईमा के पूर्व चौथी शताब्दि से लेकर ईमवी सन् की पाँचवीं शताब्दि तक बिहार एक समृद्धिशाली प्रदेश था और उस समय यहाँ का कला-कौशल उन्नति के शिखर पर पहुँचा हुआ था । यहाँ के शासकों ने जगह-जगह सड़कें बनवाई थीं, तथा जावा, वालि आदि सुदूरवर्ती द्वीपों में जहाज़ों के बेड़े भेजकर इन द्वीपों को बसाया था। बिहार प्रान्त में जो प्राचीन खण्डहर और मूर्तियाँ उपलब्ध हुई हैं उससे पता चलता है कि यह स्थान ईसा के पूर्व छठी शताब्दि में बौद्ध तथा जैनों का बड़ा भारी केन्द्र था। सम्राट अशोक ने बौद्ध धर्म का प्रचार करने के लिये यहाँ से लङ्का, चीन, तिब्बत आदि सुदूर स्थानों में उपदेशक भेजे थे । जैन और बौद्ध ग्रन्थों में मगध देश (दक्षिण बिहार) की गणना प्राचीन १६ जनपदों में की गई है । यह देश पूर्व दिशा का पुनीत तीर्थ माना जाता था और यहाँ का जल पवित्र समझा जाता था । मगध की भाषा मागधी थी जिममें महावीर और बुद्ध ने प्रवचन किया था । -- ___ * अङ्ग, बङ्ग, मगह, मलय, मालवय, अच्छ, बच्छ, कोच्छ, पाढ, लाढ, बजि, मोलि, कासी, कोमल, अवाह, संभुत्तर (सुम्होत्तर)-भगवती १५ । तुलना करो–अंग, मगध, कासी, कोमल, वजि, मल्ल, चेति, वंस, कुरु, पंचाल, मच्छ, सूरसेन, अस्मक, अवन्ति, गंधार, कम्बोज-अंगुत्तर निकाय १, पृ. २१३. Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

Loading...

Page Navigation
1 ... 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96