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जैन श्रमण-संघ और जैन धर्म का प्रसार
इसवी सन् के पूर्व जैन श्रमणों की प्रवृत्तियों का केन्द्र काफ़ी विस्तृत हो गया था :
गोदाम गण की शाग्वाएँ:-नामलित्तिया, कोडिवरिमिया, पुंडबद्धणिया, दामी खब्बडिया।
उत्तर बलिस्सह गण की शाखाएँ:-कोमविया, माइत्तिया (सुत्तिवत्तिया), कोडंबाणी, चन्दनागरी।
उद्देह गण की शाग्वाएँ:-उदंवरिजिया, मामपुरिया, मइपत्तिया, पुण्गापत्तिया ।
कुल:-नागभूय, मोमभूय, उल्लगच्छ, हत्थलिज, नंदिज, पारिहासय ।
चारण गण की शाखाएँ:-हारियमालागारी (हारियमालगढी) मंकामीया, गवेधुया, वजनागरी ।
कुलः-वच्छलिज, पीइधम्मिन, हालिज, पूसमित्तिज, मालिज, अजवेडय, कराहमह् ।
उड्डुवाडिय गण की शाखाएँ:-चंपिजिया, भद्दिजिया, काकंदिया, मेहलिजिया ।
कुलः-भद्द नसिय, भद्दगुत्तिय, जसभद्द ।
वेसवडिय गण की शाखाएँ:-मावत्थिया, रजपालिया, अंतरिजिया, खेमलिजिया।
कुलः–मेहिय, कामिड्ढिा , इंदपुरग । माणव गण की शाखाएँ:-कासवजिया, गोयमजिया, वामिहिया, मोरहिया। कुलः--इमिगुत्ति, इसिदत्तिय, अभिजयन्त । कोडिय गण की शाखाएँ:-उच्चानागरी, विजाहरी, बइरी, मज्झिमिल्ला । कुलः-बंभलिज, वच्छलिज, वाणिज, पाहवाहणय* |
इसके अतिरिक्त मज्झिमा, विजाहरी, उच्चानगरी, अजसेणिया, अजतावसी, अजकुबेरी, अजइसिपालिया, बंभदीविया, अजबइरी, अजनाइली, अजजयन्ती नामक शाखाओं का उल्लेख मिलता है । ध्यान रखने की बात है कि
* ध्यान रखने की बात है कि विक्रम संवत् १४०५ में प्रबन्धकोश के रचयिता राजशेखर ने ग्रंथ की प्रशस्ति में अपने आपको कोटिक गण, प्रश्नवाहनक कुल, मध्यमा शाग्वा, हर्षपुरीय गच्छ और मलधारि सन्तान बताया है ।
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