Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 27
________________ भारत के प्राचीन जैन तीर्थ मगध का दूसरा नाम कीकट था। ब्राह्मण ग्रन्थों में मगध को पापभूमि बताते हुए वहाँ गमन करना निषिद्ध माना गया है । इस पर १८वीं सदी के एक जैन यात्री ने व्यंगपूर्वक लिखा है-यह कितने अाश्चर्य की बात है कि यदि काशी में एक कौवा भी मर जाय तो वह सीधे मोक्ष में पहुँच जाता है, लेकिन यदि कोई मनुष्य मगधभूमि में मरे तो वह गधे की योनि में पैदा होता है ! जैन ग्रन्थों में मगधवासियों की बहुत प्रशंसा की है और कहा है कि वहाँ के लोग संकेत मात्र से बात को समझ जाते हैं । _ शिशुनागवंशी सम्राट बिंबिसार ( श्रेणिक ) मगध में राज्य करता था । कूणिक (अजातशत्रु, मृत्युकाल ५२५ ई. पू.), अभयकुमार और मेघकुमार आदि उसके अनेक पुत्र थे । __ मगध की राजधानी राजगृह (गजगिर ) थी। राजगृह की गणना भारत की दस राजधानियों में की गई है |* मगध देश का मुख्य नगर होने से राजगृह को मगधपुर भी कहा जाता था। जैन ग्रन्थों में इसे क्षितिप्रतिष्ठित, चणकपुर, ऋषभपुर और कुशाग्रपुर नाम से भी कहा गया है। कहा जाता है कि कुशाग्रपुर में प्रायः आग लग जाया करती थी, अतएव मगध के राजा बिम्बिसार ने उसके स्थान पर राजगृह नगर बसाया । महाभारत के अनुसार, राजगृह में राजा जरासंध राज्य करता था। यहाँ से महावीर के अनेक शिष्यों का मोक्ष-गमन बताया जाता है। राजगृह प्रभास गणधर और दशवैकालिक के कर्ता शांभव का जन्मस्थान था । महावीर को केवलज्ञान होने के सोलह वर्ष पश्चात् यहाँ दूसरे निह्नव की स्थापना हुई थी। ___ पाँच पहाड़ियों से घिरे रहने के कारण राजगृह को गिरिव्रज भी कहा जाता था । इन पाँच पहाड़ियों के नाम हैं-विपुल, रत्न, उदय, स्वर्ण और वैभार | ये पहाड़ियाँ अाजकल भी राजगृह में मौजूद हैं और जैनों द्वारा पवित्र मानी जाती हैं। इनमें वैभार और विपुल गिरि का जैन ग्रन्थों में विशेष महत्व बताया - -.- -.-....-.-- ___* चम्पा, मथुरा, वाराणसी, श्रावस्ति, साकेत, कांपिल्य, कौशांबी, मिथिला. हस्तिनापुर, राजगृह-स्थानमंग १०.७१७; निशीथ सूत्र ६.१६ । तुलना करोचम्पा, राजगृह, श्रावस्ति, साकेत, कौशांबी, वाराणमी-दीघनिकाय, महासुदस्मन सुत्त । ( २० ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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