________________
भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
मथुरा के शिलालेखों में भी ये ही गण, शाखायें और कुल उत्कीर्ण हैं ।
दुर्भाग्य से इनमें अधिकतर नामों का ठीक ठीक पता नहीं चलता, किन्तु जिनका पता चलता है उससे स्पष्ट है कि जैन श्रमणों ने ईमवी मन के पूर्व ताम्रलिप्ति, कोटिवर्ष, पाण्डुवर्धन, कौशांबी, शुक्तिमती, उदुम्बर, मापपुरी (?). चम्पा, काकन्दी, मिथिला, श्रावस्ति, अन्तरञ्जिया, कोमिल्ला, उच्चानागर्ग, मध्यमिका और ब्रह्मद्वीप आदि स्थानों में विहार कर इन प्रदेशों को अपनी प्रवृत्तियों का केन्द्र बनाया था। इन सब क्षेत्रों को जैनधर्म के पनीत तीर्थ मानना चाहिए।
Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat
www.umaragyanbhandar.com