Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 18
________________ महावीर की विहार-चर्या आठवाँ वर्ष इसके बाद दोनों कुंडाग संनिवेश जाकर वासुदेव के मन्दिर में ध्यान में अवस्थित हो गये । वहाँ से मद्दणा ग्राम पहुँचकर बलदेव के मन्दिर में ठहरे । वहाँ से बहुसालग ग्राम पहुँचे। यहाँ सालजा व्यन्तरी ने उपसर्ग किया । तत्पश्चात् दोनों ने लोहग्गल राजधानी की ओर प्रस्थान किया। यहाँ उन्हें राजपुरुषों ने गुप्तचर समझकर पकड़ लिया । यहाँ से दोनों पुरिमताल पहुँचे और -शकटमुख उद्यान में ध्यानावस्थित हो गये । यहाँ से दोनों ने उन्नाट की ओर प्रस्थान किया, और वहाँ से गोभूमि पहुँचे । तत्पश्चात् दोनों राजगृह पाये । यहाँ महावीर ने आठवाँ चातुर्मास व्यतीत किया । नौवाँ वर्ष गोशाल को साथ लेकर महावीर ने फिर से लाढ देश की यात्रा की, और यहाँ वजभूमि और सुब्भभूमि में विचरण किया। अब की बार महावीर यहाँ छह महीने तक रहे और उन्होंने अनेक प्रकार के कष्ट सहन करते हुए यहीं चातुर्मास व्यतीत किया । दसवाँ वर्ष तत्पश्चात् महावीर और गोशाल सिद्धत्थपुर आये । यहाँ से दोनों जब कुम्मगाम जा रहे थे तो जंगल में एक तिल के पौधे को देखकर गोशाल ने प्रश्न किया कि वह पौधा नष्ट हो जायगा या नहीं ? महावीर ने उत्तर दिया कि पौधा नष्ट हो जायगा, लेकिन उसका बीज फिर पौधे के रूप में परिणत होगा। कुम्मगाम में वैश्यायन नामक बाल तपस्वी को तप करते देखकर गोशाल ने पूछा-"तुम मुनि हो या जूत्रों की शय्या ?" इस पर वैश्यायन ने क्रुद्ध होकर गोशाल पर तेजोलेश्या छोड़ी। महावीर ने शीतलेश्या का प्रयोग कर गोशाल को बचाया । इस के बाद कुम्मगाम से सिद्धत्थपुर लौटते हुए महावीर के कथनानुसार जब गोशाल ने उगे हुए तिल के पौधे को देखा तो वह नियतिवादी हो गया और महावीर से अलग होकर श्रावस्ति में किसी कुम्हार की शाला में आकर महावीर द्वारा प्रतिपादित तेजोलेश्या की सिद्धि के लिये प्रयत्न करने लगा। महावीर ने वैशाली के लिये प्रस्थान किया और नाव से गण्डकी नदी पार कर वाणियगाम पहुँचे । वहाँ से श्रावस्ति पहुँच कर महावीर ने दसवाँ चौमासा व्यतीत किया । Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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