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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
ग्यारहवाँ वर्ष तत्पश्चात् महावीर ने सानुलहियगाम की ओर प्रस्थान किया । वहाँ से वे दढभूमि गये और पेढाल उद्यान में पोलास नामक चैत्य में ठहरे । यहाँ बहुत से म्लेच्छ रहते थे; उन्होंने महावीर को अनेक कष्ट दिये । इसके बाद वे बालुयागाम, सुभोम, सुच्छेत्ता और मलय होते हुए हथिसीस पहुँचे। इन स्थानों में महावीर ने अनेक उपसर्ग सहे। तत्पश्चात् महावीर ने तोसलि के लिये प्रस्थान किया। वहाँ से वे मोसलि गये, फिर लौट कर तोलि आये । वहाँ से सिद्धत्थपुर होते हुए वयग्गाम आये । महावीर ने इस प्रदेश में छह महीने विचरण किया। इन स्थानों में महावीर को घोर उपसर्ग सहन करने पड़े। इसके बाद महावीर पालभिया पहुँचे, और फिर सेयविया होते हुए उन्होंने श्रावस्ति की अोर विहार किया। उस समय श्रावस्ति में स्कन्द ( कार्तिकेय ) की पूजा होती थी। वहाँ से महावीर कौशांबी, वाराणसी, राजगृह और मिथिला में विचरण करते हुए वैशाली पहुंचे और यहाँ उन्होंने ग्यारहवाँ चौमासा बिताया। (कुछ लोगों का कहना है कि यह चातुर्मास महावीर ने मिथिला में बिताया ।)
बारहवाँ वर्ष यहाँ से महावीर ने सुंसुमारपुर के लिए प्रयाण किया। फिर भोगपुर, नन्दिगाम और मेंढियगाम होते हुए कौशांबी पधारे। यहाँ उन्हें भ्रमण करते करते चार मास बीत गये लेकिन अाहार - लाभ न हुआ। अन्त में चम्पा के राजा दधिवाहन की पुत्री चन्दनबाला ने उन्हें आहार देकर पुण्य लाभ किया । तत्पश्चात् महावीर सुमङ्गलगाम और पालय होते हुए चम्पा पधारे और यहाँ किसी ब्राह्मण की यज्ञशाला में ठहरे। महावीर ने यहाँ बारहवाँ वर्षावास बिताया।
तेरहवाँ वर्ष तत्पश्चात् महावीर जंभियगाम पहुँचे। वहाँ से मेंढियगाम होते हुए मझिमपावा अाये । यहाँ से लौट कर फिर जंभियगाम गये और यहाँ नगर के बाहर वियावत्त चैत्य में ऋजुवालिका नदी के उत्तरी किनारे श्यामाक गृहपति के खेत में शाल वृक्ष के नीचे वैशाख सुदी १० के दिन केवलज्ञान प्राप्त किया।
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