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भारत के प्राचीन जैन तीर्थ
कर वासुदेव के मन्दिर में ध्यान में लीन हो गये । तत्पश्चात् दोनों श्रावत्ताग्राम जाकर बलदेव मन्दिर में ठहरे । यहाँ से दोनों चोराय संनिवेश पहुँचे, फिर कलंबुक संनिवेश श्राये | यहाँ दोनों क़ैद कर लिए गये । तत्पश्चात् गुरु-शिष्य लाढ़ देश की ओर चले । लाढ़ देश वज्जभूमि और सुब्भभूमि नामक दो भागों में विभक्त था । इस देश में गाँवों की संख्या बहुत कम थी, और बहुत दूर चलने पर भी वसति (निवास स्थान ) मिलना कठिन होता था । यहाँ के निवासी रुक्ष भोजन करने के कारण प्रकृति से क्रोधी होते थे । ये लोग साधुत्रों से द्वेष करते थे, उन्हें कुत्तों से कटवाते थे, और उन पर दण्ड आदि से प्रहार करते थे। ये लोग यतियों को ऊपर से उठाकर नीचे पटक देते, तथा उनके गोदोहन, उकडू और वीर श्रादि श्रासनों से गिराकर उन्हें मारते थे । कपास आदि के प्रभाव में यहाँ के लोग तृण आड़ते थे । लाढ़ देश में महावीर और गोशाल ने अनेक प्रकार के कष्ट सहनकर छह मास विहार किया । इस देश में बौद्ध साधु कुत्तों के उपद्रव से बचने के लिए अपनी देह के बराबर चार अंगुल मोटी लाठी लेकर चलते थे, लेकिन महावीर ने यहाँ बिना किसी लाठी आदि के भ्रमण किया । तत्पश्चात् दोनों पुन्नकलस होते हुए भद्दिय नगरी लौटाये । महावीर ने यहाँ पाँचवाँ चातुर्मास बिताया ।
छठा वर्ष
तत्पश्चात् दोनों कदलीग्राम, जंबूसंड और तंबाय संनिवेश होते हुए कूविय संनिवेश पहुँचे । यहाँ इन्हें गुप्तचर समझ कर पकड़ लिया गया । उसके बाद दोनों वैशाली आये । यहाँ आकर गोशाल ने महावीर से कहा कि जब मुझ पर कोई आपत्ति आती है तो आप मेरी सहायता नहीं करते | यह कह कर गोशाल महावीर का साथ छोड़कर चला गया । महावीर वैशाली से गामाय संनिवेश होते हुए, सालिसीसय ग्राम पहुँचे । यहाँ उन्हें कटपूतना व्यंतरी ने अनेक कष्ट दिए । कुछ समय बाद गोशाल फिर महावीर के पास या गया । दोनों भद्दिय पहुँचे । महावीर ने यहाँ छठा वर्षावास व्यतीत किया ।
सातवाँ वर्ष
तत्पश्चात् गुरु-शिष्य ने मगध देश में विहार किया । यहाँ श्रालभिया नगरी में महावीर ने सातवाँ वर्षावास व्यतीत किया ।
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