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महावीर की विहार-चर्या
थो । दोनों के बीच में सुवर्णकूला और रूप्यकुला नामक नदियाँ बहती थीं। महावीर ने दक्षिण वाचाला से उत्तर वाचाला की ओर प्रस्थान किया । उत्तर वाचाला जाते हुए बीच में कनकखल नाम का अाश्रम पड़ता था । यहाँ से महावीर सेयविया नगरी पहँचे, जहाँ प्रदेशी राजा ने उनका आदर-सत्कार किया। तत्पश्चात् गंगा नदी पार कर महावीर सुरभिपुर पहुँचे और वहाँ से थूणाक संनिवेश पहुँच कर ध्यान में अवस्थित हो गए । यहाँ से महावीर राजगृह गए और उसके बाद नालन्दा के बाहर किसी जुलाहे की शाला में ध्यानावस्थित हो गए । संयोगवश मंखलिपुत्र गोशाल भी उस समय यहीं ठहरा हुआ था। महावीर के व्यक्तित्व से प्रभावित होकर वह उनका शिष्य बन गया । यहाँ से चल कर दोनों कोल्लाग संनिवेश पहुँचे। महावीर ने यहाँ दूसरा चातुर्माम बिताया ।
तीसरा वर्ष तत्पश्चात् महावीर और गोशाल सुवन्नखलय पहुंचे। वहाँ से ब्राह्मणग्राम गये । यहाँ नन्द और उपनन्द नामक दो भाई रहते थे, और दोनों के अलग अलग मोहल्ले थे । गुरु-शिष्य यहाँ से चलकर चंपा पहुँचे। भगवान् ने यहाँ तीसरा चातुर्मास व्यतीत किया ।
चौथा वर्ष तत्पश्चात् दोनों कालाय संनिवेश जाकर एक शून्यगृह में ठहरे । वहाँ से पत्तकालय गये, और वहाँ से कुमाराय संनिवेश जाकर चंपरमणिज नामक उद्यान में ध्यानावस्थित हो गये । यहाँ पार्थापत्य स्थविर मुनिचन्द्र ठहरे हुए थे, जिनके विषय में ऊपर कहा जा चुका है। यहाँ से चलकर दोनों चोराग संनिवेश पहुँचे, लेकिन यहाँ गुप्तचर समझकर दोनों पकड़ लिये गये । यहाँ से दोनों ने पृष्ठचंपा के लिए प्रस्थान किया । महावीर ने यहाँ चौथा चौमासा बिताया।
पाँचवाँ वर्ष पारणा के बाद महावीर और गोशाल यहाँ से कयंगला के लिए रवाना हुए । वहाँ से श्रावस्ति पहुँचे, फिर हलेद्दय गये । फिर दोनों नङ्गलाग्राम पहुँच
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