Book Title: Bharat ke Prachin Jain Tirth
Author(s): Jagdishchandra Jain
Publisher: Jain Sanskriti Sanshodhan Mandal

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Page 20
________________ महावीर की विहार-चर्या इसके बाद महावीर ने ३० वर्ष तक देश-देशान्तर में विहार करते हुए अपने उपदेशामृत से जन-समुदाय का कल्याण करते हुए अपने सिद्धान्तों का प्रचार किया। अन्त में वे मज्झिमपावा पधारे और यहाँ चातुर्मास व्यतीत करने के लिये हस्तिपाल नामक गणराजा के पटवारी के दफ़्तर ( रजुगसभा) में ठहरे। एक एक करके वर्षाकाल के तीन महीने बीत गये। चौथा महीना लगभग आधा बीतने को आया । इस समय कार्तिकी अमावस्या के प्रातःकाल महावीर ने निर्वाण लाभ किया । महावीर के निर्वाण के समय काशी-कोशल के नौ मल्ल और नौ लिच्छवि नामक अठारह गणराजा मौजूद थे; उन्होंने इस पुण्य अवसर पर सर्वत्र दीपक जलाकर महान् उत्सव मनाया । महावीर वर्धमान ने बिहार, बंगाल और पूर्वीय उत्तरप्रदेश के जिन स्थानों को अपने विहार से पवित्र किया था, वे सब स्थान जैनों के पुनीत तीर्थ हैं । दुर्भाग्य से आज इन स्थानों में से बहुत कम स्थानों का ठीक ठीक पता लगता है; बहुत से तो पिछले अढ़ाई हज़ार वर्षों में नाम शेष रह गये हैं । यदि विहार, बङ्गाल और उत्तरप्रदेश के उक्त प्रदेशों की पैदल यात्रा की जाय तो निस्सन्देह यात्रियों को अक्षय पुण्य का लाभ हो और इससे संभवतः बहुत से अज्ञात पवित्र स्थानों का पता चल जाय । ( १३ ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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